इंदौर। आज फादर्स डे है। यहां पढ़िए इंदौर के ऐसे युवक की कहानी जो अनाथ मूक-बधिरों के लिए पिता बन गया। इन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए उन्होंने अपने जीवन की पूरी कमाई लगा दी। लाख-पचास हजार नहीं। पूरे सवा करोड़। इस पैसे से उन्होंने शुरू किया देश का पहला मूक-बधिर अनाथ आश्रम।
तो किस्सा यहां से शुरू होता है…
अपने मूक बधिर बेटे की अकस्मात मौत से पिता स्व. बाबूलाल पुरोहित को गहरा धक्का लगा। इस मौत से उनका दूसरा बेटा ज्ञानेंद्र पुरोहित भी इतना दु:खी हुआ कि उन्होंने सीए की पढ़ाई छोड़कर मूक-बधिरों के लिए काम करना शुरू कर दिया। यह देख परिचितों ने पिता को बताया कि ये तो पागलपन है। लेकिन बेटे ने तो मूक-बधिरों के लिए पूरा जीवन समर्पित करने की ठान ली थी। इसलिए पिता के पास समझाने की गुंजाइश नहीं थी। लिहाजा वे भी बेटे के साथ हो गए। इस बीच पिता बाबूलाल पुरोहित की भी मौत हो गई। तब अकेले ज्ञानेंद्र ही अपने इस नेक काम में डटे रहे। लगातार मूक-बधिरों की सेवा करते रहे।
इस मामले में टर्निंग पॉइंट साबित हुआ पाकिस्तान से आई गीता का केस। इस केस से यह तो पता चल गया कि बेसहारा मूक बधिरों के लिए भी एक अनाथाश्रम की जरूरत है। …बस इस घटनाक्रम के बाद अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए प्रयास शुरू कर दिए।
इस प्रोजेक्ट में पिता ने अपनी रिटायरमेंट की राशि और पूरी जमा पूंजी (70 लाख रु.) दे दी। कर्मवीर बहू-बेटे ने भी महानायक अमिताभ बच्चन के केबीसी शो में जीते 25 लाख रु. अनाथाश्रम में लगा दिए। इस काम में बिग बी भी पीछे नहीं हटे और उन्होंने भी 11 लाख रु. की राशि दी। इस तरह नेकी को बल मिला और मूक-बधिरों के लिए अनाथाश्रम बनकर संचालित भी होने लगा। देश में मूक-बधिरों का यह पहला अनाथाश्रम है।
अब बीस साल पहले का वो दर्दनाक किस्सा जिससे ज्ञानेंद्र की जिंदगी का डायरेक्शन ही बदल गया
ज्ञानेंद्र बताते हैं ‘1997 में मेरे बड़े भाई आनंद की भोपाल में एक ट्रेन हादसे में मौत हो गई। तब वे 26 साल के थे। बोल-सुन नहीं पाते थे। हमें उनकी मौत की सूचना 15 दिन बाद मिली। तब तक उनका अंतिम संस्कार हो चुका था। और मैं 22 साल का था। सीए की तैयारी कर रहा था।
पिता मप्र ग्रामीण बैंक, होशंगाबाद में रीजनल मैनेजर थे। परिवार में माता-पिता, बड़े भैया आनंद और मैं थे। आनंद बचपन से ही मूक-बधिर थे, इसके चलते मैं उनकी व्यावहारिक परेशानियों से पूरी तरह वाकिफ तथा उनसे बहुत स्नेह रखता था। उनकी मौत ने हम सभी को बुरी तरह हिला दिया।
मुझे लगने लगा कि जो बोल-सुन नहीं पाते वे अपनी बातें दूसरों के सामने रखने में कितनी दिक्कतें आती होंगी। यहां से मैंने इन लोगों के लिए कुछ करने का संकल्प लिया। सीए की पढ़ाई छोड़ दी। एमएसडब्ल्यू (मास्टर ऑफ सोशल वेलफेयर) की डिग्री ली।
शादी की बात आई तो मैंने शर्त रख दी कि ऐसे ही लड़की से शादी करूंगा जो मूक-बधिरों की देखरेख में मेरा सहयोग करेगी। ऐसा ही विज्ञापन उन्होंने तब अखबार में दिया। यहां से मोनिका का प्रस्ताव मिला। मोनिका पुरोहित ने भी एमएसडब्ल्यू की डिग्री ले रखी थी। इसके साथ ही बीएड् और एमएड् (स्पेशल इन साइन लैंग्वेज) भी कर रखा था।
ज्ञानेंद्र कहते हैं मोनिका की इसी डिग्री ने हमें मूक-बधिरों के लिए स्कूल खोलने का रास्ता दिखाया। इसके बाद हमने आनंद सर्विस सोसायटी की आधारशिला रखी। इसके लिए ससुर पीडी शर्मा ने अपना स्कीम 54 स्थित तीन मंजिला मकान दिया। इसमें हम तब से ही मूक बधिर बच्चों के लिए स्कूल और होस्टल संचालित कर रहे हैं। अब हम बच्चों को पढ़ाने के साथी इसी से आजीविका भी चलाते हैं।
13 दिन पहले 5 जून को संस्था ने मूक बधिरों के लिए सांवेर रोड, ग्राम बरगदी में 10 हजार वर्गफीट में तीन मंजिला अनाथाश्रम बनाया। जिसका शुभारंभ राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने किया है।
बकौल पुरोहित सवा करोड़ रु. से ज्यादा की लागत से बनाए गए इस अनाथाश्रम का सपना इतना आसान नहीं था। इसमें उनके पिता बाबूलाल पुरोहित का महत्वपूर्ण योगदान रहा जो अब दुनिया में नहीं है। 2020 में कोरोना के दौरान उनकी मौत हो गई। ‘फादर्स डे’ पर वे उनके अतीत व मूक-बधिरों के लिए किए गए नेक काम को याद कर उन पर गर्व महसूस करते हैं।
प्रधानमंत्री वाजपेयी ने मूक बधिरों की पीड़ा को समझा
भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी एक बार इंदौर आए तो मैंने तत्कालीन आईजी वीरेंद्र मोहन कंवर से निवेदन कर उनसे दो मिनट मिलने की गुहार की। इस पर मुझे उनसे मिलवाया गया तो मैंने कम शब्दों व कम समय में अपनी बात कही। मैंने कहा कि राष्ट्रगान पूरे सम्मान के साथ गाया जाता है लेकिन मूक-बधिर इसे कैसे सम्मान दे।
…और 5 जून को अनाथाश्रम का मिशन हो गया पूरा।
वे यह राष्ट्रगान साइन लैंग्वेज में ही कर सकते हैं। आमतौर पर साइन लैंग्वेज में हाथ हिलाने के साथ चेहरे के हाव-भाव होते हैं लेकिन इस भाषा में राष्ट्रगान के लिए कोई प्रावधान नहीं था बल्कि ऐसा करने पर अपमान माना जाता था। मामले में अटलजी ने इस पर गौर किया और साइन लैंग्वेज में राष्ट्रगान करने की मान्यता मिल गई। इस पर पिता बहुत खुश हुए।
पिता ने दूर कर दी अनाथाश्रम की चिंता
एक अन्य मामला पाकिस्तान से आई गीता का था जिसे सालों की मशक्कत के बाद उसके परिवार को ढूंढा और सुपुर्द किया। इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली लेकिन इसके सहित मूक-बधिर बच्चों से ऐसे कई मामले सामने आए जिसमें उन्हें सहारे की जरूरत थी।
इसे देखते हुए मूक-बधिर के लिए अनाथाश्रम बनाने का विचार मन में आया। दरअसल आदिवासी क्षेत्रों झाबुआ, आलीराजपुर आदि में मूक-बधिर बच्चों को माता-पिता अशुभ मानकर छोड़ देते हैं तो कुछेक मामले बलि देने के भी हुए। इस पर ऐसे बच्चों के आश्रय को लेकर प्रयास शुरू किए।
मोनिका पुरोहित के पिता पीडी शर्मा व मां पुष्पा जिन्होंने भी अनाथाश्रम के लिए मदद की।
इसके लिए 14 साल बाद अरबिंदो अस्पताल के पीछे, बरदरी में 10 हजार वर्गफीट की जमीन पसंद आई। इसके लिए पैसों का इंतजाम नहीं था। यह बात पिता को पता चली तो उन्होंने अपने रिटायरमेंट के 35 लाख रु. और जमा पूंजी भी करीब 35 लाख रु दिए और जमीन खरीदी।
बच्चनजी बोले मेरे ओर से मूक बधिरों के लिए यह राशि
इस बीच 2020 में कोरोना से पिता की मौत हो गई लेकिन वे हमें जो हिम्मत देकर गए थे वह कम नहीं थी। इसी साल महानायक अमिताभ बच्चन के ‘कौन बनेगा करोड़ पति’ शो में कर्मवीर के रूप में हम पुरोहित दंपती को बुलाया गया। यहां हमने 25 लाख रु. जीते।
बच्चनजी ने हमने पूछा कि इस राशि का क्या करोगे? हमने कहा कि मूक-बधिरों के लिए अनाथाश्रम (बालश्रय) बनाएंगे तो वे बहुत अभिभूत हुए। हालांकि टैक्स राशि कटने के बाद 17.50 लाख रु. हमारे खाते में टांसफर हुए। यह राशि भी हमने अनाथाश्रम के निर्माण में लगा दी।
इस बीच एक माह बाद बच्चनजी के ऑफिस से फोन आया कि वे आपके इस अनाथाश्रम के लिए 11 लाख रु. की राशि देना चाहते हैं। इसके बाद उनके ऑफिस से एक पत्र आया जिसमें उन्होंने हमारी तारीफ की। इसके बाद खुद बच्चनजी ने हमने वीडियो कॉल पर बात की और कहा कि मेरी ओर से यह छोटी सी राशि अनाथाश्रम के लिए दे रहा हूं।
दूसरी ओर मोनिका के पिता पीडी शर्मा ने भी इस नेक काम के लिए 10 लाख रु. दिए और नेक काम को मजबूती मिलती गई। उन्होंने बेटी-दामाद को भरोसा दिलाया कि वे इस काम को जारी रखें। अगर कोई और भी मदद लगी तो वे हरसंभव करेंगे।
‘फादर्स डे’ पर इससे अच्छा कोई तोहफा नहीं
दंपती बताते हैं कि इसके पूर्व एक बार मूक-बधिर बालिकाओं को रखने की परेशानी हो गई। तब तत्कालीन कलेक्टर मनीषसिंह की काफी मदद मिली। उन्होंने तब अहिल्याश्रम स्कूल का भवन इसके लिए अस्थाई रूप से उपलब्ध कराया था।
इस तरह पिता ने हमारी मंजिल को पहुंचाने में काफी मदद की और अनाथाश्रम बनकर तैयार हो गया। 5 जून को राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने इसका शुभारंभ किया। वर्तमान में इसमें 80 मूक बधिर बालिकाएं रहती हैं। इनकी पढ़ाई-लिखाई, भोजन आदि आनंद सर्विस सोसायटी के माध्यम से किया जा रहा है।
फादर्स डे पर पिता को याद कर पुरोहित भावुक होकर कहते हैं कि मुझे अपने पिता पर गर्व है कि उन्होंने हमारी और मूक बधिर की भावनाओं को समझा। फादर्स डे पूर्व मूक बधिरों का अनाथाश्रम बनकर तैयार हो गया और बालिकाओं का वहां अच्छा लालन-पालन हो रहा है, इससे अच्छा कोई तोहफा नहीं हो सकता।