ट्रेन हादसे में मासूम ने हाथ-पैर खोए,अपना हौंसला नहीं, एक बार मिलकर गए मता-पिता अब तक वापस नहीं लौटे,पर अब अस्पताल ही बना मासूम का घर…

ट्रेन हादसे में मासूम ने हाथ-पैर खोए,अपना हौंसला नहीं, एक बार मिलकर गए मता-पिता अब तक वापस नहीं लौटे,पर अब अस्पताल ही बना मासूम का घर…

इंदौर। करीब 3 माह पहले रतलाम रेलवे ट्रैक पर ट्रेन से हाथ-पैर कटने से गंभीर रूप से घायल हुए 6 वर्षीय आकाश की हालत में सुधार हुआ है। विडम्बना यह है कि एक माह पहले एमवाय अस्पताल में आकर उसकी शिनाख्त कर गए परिजन अब तक नहीं लौटे हैं। उनसे चाइल्ड लाइन, जीआरपी और आरपीएफ पूछताछ कर चुकी है लेकिन वे विरोधाभासी बयान दे रहे हैं।

मासूम ने कुछ दिन पहले पीडियाट्रिक यूनिट में एक हाथ-पैर से क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। अब ट्रायसाइकिल चलाना भी सीख लिया है। हादसे को लेकर बनी गफलत की स्थिति, उसके माता-पिता के अलग-अलग बयान और वापस नहीं लौटने के मद्देनजर अब उसे चाइल्ड लाइन को सौंपने की तैयारी है। उसे एकाध हफ्ते में बाल संरक्षण आश्रम भेजा जाएगा।

ट्रेन से सफर के दौरान गोद से गिरा था मासूम

3 मार्च को रतलाम के पास आकाश रेलवे ट्रैक पर खून में लथपथ मिला था। उसके एक पैर और एक हाथ कटकर धड़ से अलग हो गए थे। दूसरा हाथ और दूसरा पैर भी बुरी तरह कुचले हुए थे। दो सर्जरी के बाद जान बच गई थी।

उसकी टूटी-फूटी बातों से पता चला था कि उसका नाम आकाश है और वह आदिवासी वर्ग से है। तब से ही वार्ड में अस्पताल स्टाफ, जीआरपी और भर्ती मरीजों के अटैंडर उसे संभाल रहे हैं। सोशल मीडिया पर उसकी खबरें देखकर करीब एक महीने पहले खरगोन के सांगली गांव के ग्रामीणों ने उसके परिवार को सूचना दी।

इसके बाद मां रेशमा, दादी और कुछ रिश्तेदार एमवाय अस्पताल पहुंचे और उसकी शिनाख्त की थी। इस दौरान मासूम उन्हें देखकर रो पड़ा था। आकाश के पिता तैरसिंह बीमार होने के कारण इंदौर नहीं आए थे। मां तो तब कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थी जबकि रिश्तेदारों ने हादसे के बारे में जानकारी दी थी। उन्होंने बताया था कि आकाश के माता-पिता मजदूरी करने गुजरात जा रहे थे। ट्रेन से सफर के दौरान आकाश मां की गोद से गिर गया था।

आकाश ट्रायसाइकिल की मदद से अपने काम करता है।

पिता कहते हैं कि मुझे कुछ नहीं पता

परिवार को सौंपने के लिए परिवार वालों से उसका आधार कार्ड और दूसरे पहचान पत्र दिखाने को कहा गया था। इसके बाद न तो वे खुद अस्पताल पहुंचे और न ही कोई दस्तावेज पेश किया। चाइल्ड लाइन और आरपीएफ की पूछताछ में आकाश की मां रेशमा जहां उसके गोद से गिरने की बात कह रही है, वहीं पिता का कहना है कि उसे इस बारे में कुछ नहीं मालूम।

खास बात यह है कि माता-पिता तो ठीक आकाश के चाचा-चाची, दादा-दादी सहित कोई भी रिश्तेदार न तो उससे मिलने अस्पताल आ रहे हैं और न ही उसे घर ले जाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। इसके चलते पूरी कहानी उलझी हुई है।

कुछ ही दिन में सीख लिया ट्रायसाइकिल चलाना

आकाश फिलहाल अस्पताल स्टाफ और जीआरपी की देखरेख में है। वह अब अच्छी डाइट भी ले रहा है। पिछले दिनों उसे यूनिट में ही ट्रायसाइकिल पर बैठाया गया तो वह काफी खुश हुआ। अस्पताल स्टाफ और उसकी देखभाल कर रहे पुलिसकर्मी चेतन नरवले ने एक हाथ से टायर चलाना सिखाया तो वह जल्द ही सीख गया।

आकाश से एक बार मिलकर गए परिजन अब तक वापस नहीं लौटे।

हादसे की कहानी फिलहाल स्पष्ट नहीं

इस बीच आकाश के अलग-अलग ऑपरेशन हुए। उसके घाव भर गए हैं। हाथ-पैर कटने की जगह पर स्किन लगाए जाने के बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। माता-पिता के नहीं आने की स्थिति में वह अब कहां जाएगा, यह सवाल बना हुआ है। अस्पताल स्टाफ, पुलिस और चाइल्ड लाइन के सदस्य नहीं चाहते कि आकाश को उसके परिवार को सौंपा जाए क्योंकि उसके साथ हुए हादसे की कहानी फिलहाल स्पष्ट नहीं हो पा रही है।

चाइल्ड लाइन को-ऑ़र्डिनेटर शुभम ठाकुर ने बताया कि ऐसी स्थिति में बच्चे को बाल संरक्षण आश्रम या किसी संस्था को सौंपा जा सकता है। इस मामले में बाल कल्याण समिति ही उचित निर्णय लेगी।

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