इंदौर लौटे मणिपुर के स्टूडेंट्स ने सुनाई आपबीती; बोले-‘गोलियां गूंजती रहीं, 3 रात से सोए ही नहीं हम’…

इंदौर लौटे मणिपुर के स्टूडेंट्स ने सुनाई आपबीती; बोले-‘गोलियां गूंजती रहीं, 3 रात से सोए ही नहीं हम’…

इंदौर। मणिपुर में हिंसा के बीच फंसे मध्यप्रदेश के 24 स्टूडेंट्स को बुधवार रात सुरक्षित इंदौर लाया गया। सभी पहले इंफाल से कोलकाता और फिर वहां से इंदौर पहुंचे। ये सभी स्टूडेंट मणिपुर में एनआईटी, ट्रिपल आईटी, स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी और एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन वहां के बिगड़े हालात की वजह से इन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। ये अपने हॉस्टल में कैद होकर रह गए थे।

इन स्टूडेंट्स में इंदौर के तीन, भोपाल का एक और 16 जिलों के एक-एक स्टूडेंट्स शामिल हैं। इंदौर एयरपोर्ट पर इन्हें लेने इनके परिजन पहुंचे थे। इन छात्रों ने यहां आने के बाद वहां के हालात और आपबीती सुनाई।

गोलियों की आवाज गूंज रही थी, हम तीन रात से सो नहीं पाए

इंदौर की रहने वाली डॉ. फौजिया मुलतानी एमबीबीएस के बाद इंफाल में पीजी (एमएस) कर रही है। उन्होंने बताया – ‘वहां बहुत बुरे हालात थे। पहली 3 रात तो हम लोग सो नहीं पाए थे। बंदूकों की आवाज आती रहती थी। अस्पताल में भी गन शॉट इंज्यूरी आती रहती थी। कर्फ्यू लगने के बाद खाना-पीना सब बंद हो गया था। मैं लेडीज हॉस्टल में रहती थी। वहां पर खाने-पीने को लेकर कुछ भी प्रोवाइड नहीं कराया गया था।

जैसे ही कर्फ्यू लगा सब कुछ शटडाउन हो गया था। इंडियन आर्मी जब वहां पर डिपलॉय की गई थी, तो शाम को वो लोग फूड डिस्ट्रीब्यूट करते थे, लेकिन कॉलेज हॉस्टल में तो वो भी हम लोगों को नहीं मिल पाता था। 3 दिन लगातार नूडल्स खाकर सर्वाइव किया। उसके बाद हमने मेडिकल सुप्रीटेंडेंट को कम्प्लेन की। लेकिन वो भी हेल्पलेस थी।

3 मई को ही मैंने पेरेंट्स को फोन कर वहां के हालात बताए थे। हमें भी नहीं मालूम था कि इतना सब कुछ हो जाएगा। घर वाले कह रहे थे कि कैसे भी करके वापस आ जाओ, लेकिन पॉसिबल नहीं था। फ्लाइट के टिकट भी बहुत ज्यादा महंगे हो गए थे, जिन्हें अफोर्ड कर पाना मुश्किल था। इसलिए सरकार से ही मदद का इंतजार कर रहे थे।’

बेटा सकुशल आ गया, बहुत खुश हूं

छात्र अक्षय को इंदौर एयरपोर्ट पर लेने उनकी मंगेतर शैली गुप्ता और बहन हिमांगिनी गुप्ता आईं थी।

इंदौर की डॉ. गीतांजलि कुंटे का बेटा कर्ण इंफाल में नेशनल स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी में पढ़ता है। जब वह इंदौर पहुंचा तो मां उसे लेने एयरपोर्ट पहुंची। उन्होंने बताया कि ‘चार या पांच मई को बेटे ने बताया कि कैंपस में हॉस्टल के पीछे एक लेक है, उसके पीछे फायरिंग हो रही थी, 3 ब्लास्ट हुए थे। इन्हें कहा गया था कि ब्लैक आउट करके रहो, कोई भी लाइट नहीं चलाएगा। दूसरे दिन वहां का वाई-फाई बंद हो गया था। तीसरे दिन कहा गया कि कमरे से बाहर नहीं आना है। हॉस्टल के आसपास पूरे समय आर्मी थी। अब बेटा वहां से सकुशल वापस आ गया है। बहुत खुश हूं।’

आसपास आगजनी हो रही थी, तो मन में थोड़ी दहशत थी

धार के धामनोद के रहने वाले नंदकिशोर यादव इंफाल में रहकर बीएससी एग्रीकल्चर की पढ़ाई कर रहे हैं। नंदकिशोर ने बताया ‘अभी इंफाल में हालात काफी कंट्रोल में है। चुड़ाचांदपुर जिले में हालात पर काबू पाने की कोशिश की जा रही है। मैं कैंपस में था, तो वहां तो कोई नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन बाहर सब बंद था। आसपास आगजनी हो रही थी तो मन में थोड़ी दहशत थी, क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं देखा था।

घर वालों को शुरुआती दिनों में मैंने कुछ नहीं बताया, ताकि उन्हें चिंता नहीं हो, लेकिन जब न्यूज में आ गया तो उन्हें पता चल गया और फिर उन्हें सब कुछ बताया। उन्हें कहा कि यहां हम ठीक है, परेशान होने की जरुरत नहीं है। शासन से कॉन्टैक्ट कर घर आने की कोशिश कर रहे हैं।

धार के धामनोद के रहने वाले नंदकिशोर यादव इंफाल में रहकर बीएससी एग्रीकल्चर की पढ़ाई कर रहे हैं। वह भी अन्य स्टूडेंट्स के साथ इंदौर पहुंचे।

हिंसा के चलते हम कैंपस में ही कैद रहे, ठीक से खाना भी नहीं मिला

इंफाल से ही इंदौर आए छात्र अक्षय ने बताया कि हम मणिपुर में हिंसा शुरू होने के बाद कैंपस में ही कैद रहे। आखिरी के दिनों में तो हमें खाना भी ठीक से नसीब नहीं हो रहा था। अक्षय को एयरपोर्ट पर लेने के लिए मंगेतर शैली गुप्ता और बहन हिमांगिनी गुप्ता आईं थी। दोनों ने बताया कि हिंसा शुरू होने के बाद ही पूरा परिवार परेशान था।

मणिपुर में क्यों हो रही हिंसा?

मणिपुर में मैतेई ट्राइब यूनियन पिछले एक दशक से मैतेई को आदिवासी दर्जा देने की मांग कर रही है। इसी सिलसिले में उन्होंने मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था। इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है। इससे आदिवासी भड़क गए। मैतेई और आदिवासियों के बीच हिंसक झड़पें शुरू हो गईं।

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