लंगड़ाने वाली बेटी को इंदौर में ‘दोनों पैरों’ पर चलाया…

लंगड़ाने वाली बेटी को इंदौर में ‘दोनों पैरों’ पर चलाया…

मध्यप्रदेश। यह कहानी मां-बाप के संघर्ष और जुनून की है, जिन्होंने जन्म से लंगड़ा कर चलने वाली बेटी को दोनों पैरों पर खड़ा कर दिया। जब वो स्कूल से आती तो बगैर पंजे का दाएं पैर का देखकर रोती थी। जितने भी डॉक्टरों को दिखाया वो हमेशा मुड़ी हुई ऐड़ी काटकर नकली पंजा लगा देने की बातें कहते थे, लेकिन मां-बाप नहीं चाहते थे।

आखिरकार इंदौर में जब एक डॉक्टर ने कहा कि ऐसा इलाज करूंगा कि एक साल में बेटी काे नेचुरल पंजे पर दौड़ा दूंगा तो परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। बेटी को दौड़ता देखने के लिए मां ने अपने गहने दो लाख रुपए में गिरवी रख दिए। बाकी रकम पिता ने दोस्तों से उधारी लेकर चुका दी। 13 महीने में डॉक्टर उसकी 4 सर्जरी कर चुके हैं। अब 16 साल की उम्र में बेटी अपने पैरों के सहारे बगैर लंगड़ाए चलने लगी है। इंदौर में आखिरी सर्जरी होनी बाकी है।

अपने मां-बाप के संघर्ष की पूरी कहानी, मक्सी की रहने वाली बेटी अलशिफा की जुबानी…

मैं 17 साल की अलशिफा शेख। दायां पैर बाएं से 18 सेमी छोटा था। दाएं पैर का पंजा ही नहीं था। सिर्फ एक हड्‌डी थी जाे पीछे की तरफ मुड़ी थी। बायां पैर सामान्य था। इस कारण से मुझे लंगड़ा कर चलना पड़ता था। बचपन में अहसास नहीं था लेकिन जैसे-जैसे बड़ी हुई, मुझे और परिवार को चिंता होने लग गई।

एक पैर पर ही बैलेंस बनाकर चलना पड़ता था। सहेलियों को चलते देखकर यह समझ गई थी कि मैं एक पैर से अपाहिज हूं और पूरी जिंदगी ऐसे ही चलना पड़ेगा। कारण यह था कि पापा कई डॉक्टर्स को दिखा चुके थे। सभी यही कहते रहे कि इलाज का एक ही रास्ता है। वो ये कि जो मुड़ी हड्‌डी है, उसे ऐ़डी के पास से काटकर नकली पैर का जूता पहना देते हैं।

13 माह बाद निकाली इलिजेरा मशीन और दोनों पर चलने लगी अलसिफा।

पर पापा वासिल शेख, मम्मी शाहीन नेचुरल पैर को काटने के पक्ष में कभी नहीं रहे। कोई यह नहीं बता रहा था कि नेचुरल तरीके से भी पंजा डेवलप किया जा सकता है। डॉक्टर कहते थे कि पंजे में 26 हडि्डयां होती हैं लेकिन मेरी सिर्फ एक है। वह भी पीछे की ओर मुड़ी हुई।

इलाज के लिए जयपुर, उदयपुर, भोपाल और इंदौर के डॉक्टर्स को दिखाते रहे। उदयपुर और जयपुर जैसे शहरों में हाईटेक और एडवांस आर्टिफिशियल ऑर्गन्स बनाए जाते हैं। सभी ने कहा कि पंजा है नहीं और पैर सामान्य से बहुत छोटा है, अब कुछ नहीं कर सकते। इन्हीं कोशिशों के बीच कोरोना काल में दो साल गुजरते चले गए और सबकुछ वैसा ही चलता रहा।

पिछले साल मेरे इंदौर के अंकल शकील शेख ने पापा को कहा कि यहां मैं एक डॉक्टर को जानता हूं। वो शायद बेटी के लिए कुछ कर दे। उनकी जानकारी के बाद पापा ने तुरंत मुझे इंदौर लाकर डॉक्टर अरविंद वर्मा जांगिड को दिखाया। वे हड्‌डी रोग के स्पेशलिस्ट है।

उन्हें जब पीड़ा बताई तो उन्होंने मेरी ब्लड, एक्सरे, सीटी स्कैन जांच आदि करवाई। रिपोर्ट देखकर कहा कि पैर की लंबाई को नेचुरल तरीके से बढ़ाया जा सकता है। अभी शरीर डेवलप होने की उम्र में है इसलिए यह संभव है। मुझे उम्मीद थी कि वे इसमें कुछ कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि मेरी पैर की लंबाई नेचुरल तरीके से बढ़ाई जा सकती है। यह भी कहा कि लंबाई बढ़ने पर पंजा भी नेचुरल बनाया जा सकता है। इसके लिए दो इंच की हड्‌डी को सर्जरी से आकार देना होगा। कुल पांच सर्जरी होंगी।

वो दिन आज भी याद है जब पापा और मम्मी की आंखें खुशी से चमक रही थीं। इलाज शुरू कराने के लिए मां ने तुरंत अंगूठी, बाली, हार गिरवी रख दिए। इससे दो लाख रुपए मिल गए। बाकी के तीन लाख रुपए पापा ने दोस्तों से उधार लिए और सर्जरी शुरू करवाईं।

इस तरह सवा साल तक फिट की गई इलिजेरा मशीन। रोज चार बार इसके स्क्रू ढीले व टाइट करने पड़ते थे, जिससे प्रतिदिन एक मिमी लंबाई बढ़ी।

पहली सर्जरी : पैर में लगाई इलिजेरा मशीन, रोज 1 मिमी बढ़ती गई लंबाई

अलशिफा कहती हैं कि मेरी पहली सर्जरी 3 जुलाई 2022 को हुई। इसका मकसद पैर की लंबाई बढ़ाने की शुुरुआत करना था। इस सर्जरी में मेरे पैर पर एक मशीन (इलिजेरा) फिट कर दी गई। यह मशीन ऐसी है जो घुटने से नीचे तक पैर की हडडियों में कसी जाती हैं। मशीन के स्क्रू इस तरह से कसे जाते हैं कि दिन में चार बार उसे खोलकर या टाइट कर धीरे-धीरे हल्के हाथों से हड्‌डी-मसल्स को घुमाया जा सके। यह काम पहले डॉक्टर और स्टाफ ने शुरू किया।

मशीन कसने के बाद रोज सुबह 8 बजे, दोपहर 12 बजे, शाम 4 बजे और रात को 8 बजे वे स्क्रू ढीले करते और हड्‌डी दोनों ओर घुमाते। ऐसा वे कई बार करते ‌और फिर कस देते। इस दौरान शुरू में हल्के दर्द का असर हुआ लेकिन दवाइयों के कारण काम आसान हो गया। डॉक्टर ने बताया रोज हमें ऐसा करना है। शुरू में मेरे माता-पिता परिवार के लोग रोज दिनभर में चार बार करते थे। फिर मैं भी खुद ही करने लगी। घर आने के बाद मैंने खुद ने इसे नियमित रूप से शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि हर रोज करीब एक मिमी पैर की लंबाई बढ़ने लगी।

दूसरी सर्जरी : पंजे की पीछे मुड़ी हुई हड्‌डी सामने की गई

दूसरी सर्जरी दिसंबर 2022 में हुई। चूंकि अब पैर की लम्बाई धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी इसलिए डॉक्टरों ने मेरे मुड़े हुए पंजे को मशीन से मोड़कर सामने किया। इससे 16 साल तक जो अहसास था, वह अब बदल गया था। इसके बाद पंजे का आकार देने की तैयारी शुरू कर दी गई।

तीसरी सर्जरी : फिर ग्रोथ कराने के लिए हड्‌डी को काटा

फिर इस साल के जनवरी में मेरी तीसरी सर्जरी हुई। इसमें मेरे पंजे की एकमात्र हडडी सामने की ओर की गई थी, उसे काटा गया ताकि आगे ग्रोथ हो सके। डॉक्टर बताया कि अभी मेरी उम्र ग्रोथ की है इसलिए धीरे-धीरे हड्‌डी बढ़ेगी। उन्होंने यह भी बताया कि पैर के पंजे में 26 हडि्डयां होती हैं चूंकि यहां एक ही हड्‌डी है तो उसके जरिए की पंजे का आकार देना होगा। इस बीच दिनभर में रोज चार बार स्क्रू ढीली कर हड्‌डियां घुमाने और स्क्रू टाइट करने का काम चलता रहा।

यह समय मेरे लिए गोल्डन चांस था क्योंकि लम्बाई लगभग दूसरे पैर के बराबर आ चुकी थी। यानी मेरी पैर की ग्रोथ 27 सेमी बढ़ चुकी थी। डॉक्टर ने बताया कि आमतौर पर अधिकतम 20 सेमी तक ही ऐसी नेचुरल ग्रोथ बढ़ाई जा सकती है, लेकिन 27 सेमी बढ़ना अपने आप में एक अलग केस है।

बेटी के इलाज के लिए माता-पिता ने लंबा संघर्ष किया। मां ने अपने गहने तक गिरवी रख दिए।

चौथी सर्जरी : मशीन को पैर से अलग कर दिया

मेरी चौथी सर्जरी मेरी फरवरी 2023 में हुई। सबसे पहले इलिजेरा मशीन लगाई थी, उसे निकाल दिया गया। सर्जरी में इस मशीन के स्क्रू, तार, वायर आदि सब निकाले गए। ऐसी ही मेरे पंजे की हड्‌डी जो आगे मोड़ी गई थी, उसमें काफी ग्रोथ होने से मांसपेशियां गहरी हो गई थीं जिससे वह पंजे की तरह दिखने लगी थीं। डॉक्टर ने मशीन निकाली और कहा कि मुझे अभी नेचुरल विकसित हुए पंजे पर एकदम प्रेशर नहीं देना है बल्कि धीरे से जमीन पर टिकाकर हल्का सा चलना है।

मैं विश्वास नहीं कर पार रही थी कि 16 साल लंगड़ कर चल रही थी अब वहां दोनों पैर अब बराबर हैं। डॉक्टर के बताए अनुसार मैं धीरे-धीरे प्रैक्टिस करने लगी और वह आदत में आ गया। मैं अब सामान्य लोगों जैसे चलने लगी हूं। अलसिफा ने बताया कि हर सर्जरी पर मुझे तीन-तीन दिन अस्पताल में एडमिट रहना पड़ा।

सरकार से नहीं मिली मदद, पिता ने कर्ज लेकर मुझे नया जीवन दिया

अलशिफा के पिता की कपड़े की दुकान है। उसने बताया कि इस पूरे इलाज में सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली। पिता भोपाल तक गए और अधिकारियों से मिले। उन्होंने बताया कि एक्सीडेंट के केस में अगर इलाज होता है या कृत्रिम अंग लगते हैं तो सरकार की ओर से मदद मिलती है। यह मामला पैर के नेचुरल ग्रोथ और पंजा विकसित करने का है इसलिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। पिता कोरोना काल में वैसे ही कठिन दौर से गुजर चुके हैं। इसके बाद मेरे इलाज में करीब 5 लाख रु. से ज्यादा लगे जिसके लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ा।

पहले एक पैर पर करती थी डांस, अब दोनों पैरों से करूंगी

अलशिफा 11वीं में बायलॉजी की छात्रा है। उन्होंने कहा कि कठिन दौर निकल गया। उस दौरान जब मेरा एक पैर छोटा था तब भी स्कूल में डांस प्रतियोगिता में भाग लेती थी। अच्छी प्रस्तुति के लिए मुझे अवार्ड भी मिल चुका है। अब आने वाले दिनों मे अब दोनों पैरों से डांस करूंगी तो उसकी बात ही कुछ अलग होगी।

13 महीने में चार ऑपरेशन किए

अलशिफा का इलाज करने वाले डॉ. अरविंद वर्मा (हड्‌डी रोग व इलिजेरा एक्सपर्ट) ने बताया कि अलशिफा के 13 माह में चार ऑपरेशन किए। दूसरे पैर की घुटने की हड्‌डी आधे से भी कम थी तथा करीब 28 सेमी छोटी थी। इसके लिए पहले लम्बाई बढ़ाई और फिर पंजा विकसित किया। मैंने रशिया, लंदन, अमेरिका, स्पैन तक के केसों की स्टडी की लेकिन ऐसा केस कहीं नहीं देखा। मेरे मन में था कि जब पैर को लंबा कर सकते हैं तो पंजा क्यों नहीं बना सकते। दो इंच की हड्‌डी को लंबा कर ग्रोथ कराई।

इसमें कुछ भी आर्टिफिशियल नहीं: डॉक्टर

डॉ. वर्मा ने बताया कि इसमें कुछ भी आर्टिफिशयल नहीं है। इसमें जब तक ट्रीटमेंट चलता है तब तक एक मशीन लगी रहती है। जब ट्रीटमेंट खत्म होता है तो मसल्स, बोन, नर्व सबकुछ ग्रोथ करता है और उसे शेप देते हैं। दरअसल, यह कंस्ट्रिशन बैंड सिंड्रोम नामक बीमारी होती है जिसमें आगे का हिस्सा डेवलप ही नहीं होता है। हम कंस्ट्रिक्शन बोन हटाते हैं और उसे ग्रो कराते हैं। मेडिकल प्रोसेस में इसे डिस्ट्रक्शन ऑस्टियोजेनेसिस और डिस्ट्रक्शन हिस्टियोजेनेसिस तकनीक कहते हैं।

इस प्रोसेस में सर्जरी के तहत इलिजेरा मशीने से पैर में स्क्रू, बोल्ट व वायर से मशीन को कसा गया। इसके स्क्रू दिन में .25 मिमी दिन में चार बार घुमाते जाते थे। ऐसा कर रोज 1 मिमी प्रति दिन से पैर की ग्रोथ हुई। इसके लिए एक स्पाइनर देते हैं जिसमें नट-बोल्ट रहते है और उसे घुमाया जाता है। अलशिफा का 13 माह इलाज चला। वह अब नए पंजे पर पूरा वजन लेकर चल रही है। अभी तक किसी प्रकार की परेशानी नहीं है। दोनों पैरों को बराबर कर दिया है।

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