इंदौर। शहर के निजी स्कूलों ने आरटीई (राइट टू एजुकेशन) को भ्रष्टाचार का अधिकार बना दिया है। संचालकों ने मनमाने तरीके से उन विद्यार्थियों की सूची शासन को सौंपी जो उनके स्कूलों में पढ़ ही नहीं रहे थे। एक दो नहीं, पांच-पांच साल तक वे फर्जी या अपात्र नामों के एवज में सरकार से लाखों रुपए एंठते रहे।
एक स्कूल ने पांच साल तक उन 31 बच्चों की फीस ली जो स्कूल ही छोड़ चुके थे। वहीं अन्य स्कूल ने एक ही स्कॉलर नंबर पर अलग-अलग विद्यार्थियों के नाम पर कई साल तक अवैध रूप से राशि ली, वहीं एक स्कूल ने तो उन बच्चों के नाम से राशि ले ली जो किसी दूसरे स्कूल में पढ़ रहे थे। यह घोटाला उस समय हुआ, जब निलंबित अक्षय सिंह राठौर डीपीसी के पद पर थे।
दो केस से समझिए कैसे किया भ्रष्टाचार
केस-1 – एक ही स्कॉलर नंबर पर दो विद्यार्थियों को दिया एडमिशन
ब्रह्म बाग कॉलोनी स्थित जूही कॉन्वेंट स्कूल ने करीब 3 लाख रुपए का घोटाला किया। स्कूल ने एक स्कॉलर नंबर के अलग-अलग विद्यार्थियों की सूची भेजी जैसे 2015-16 में राधिका प्रजापत, सलोनी बोरवाल (1745) व अन्य और सत्र 2016-17 में आराध्य गौड़, खुशी प्रजापत (2049) का स्कॉलर एक था।
केस-2 : 31 बच्चों ने स्कूल छोड़ा, फीस जारी
इंदौर कॉन्वेंट स्कूल के 31 स्टूडेंट्स ने 2016-17 में स्कूल छोड़ दिया। अगले सत्र में स्कूल ने आरटीई में जिन 43 बच्चों का एडमिशन किया उनमें इन 31 बच्चों के नाम भी जोड़े और फीस वसूल ली। यही स्थिति 2018-19 सत्र में भी रही। संचालक ने पांच सत्रों में अवैध रूप से करीब 12 लाख रुपए की राशि सरकार से ऐंठ ली।
गड़बड़ी की शिकायत इन स्कूलों में
इंदौर कॉन्वेंट, जूही कॉन्वेंट, एसडी प्रजापति एकेडमी, लिटिल ऐंजल, गुरुकुल एकेडमी, अप्सरा कॉन्वेंट, बनारसी बाई बाल मंदिर, संस्कार विद्या निकेतन, ब्रिलियंट एकेडमी, नवचेतन स्कूल, एन. एक्सीलेंट एकेडमी, चिल्ड्रन एकेडमी, रीगल कैम्ब्रिज, सदगुरु विद्या विहार, आंबेडकर हा.से. स्कूल, सेंट पीटर, पीएसजीएम एकेडमी, तिरुपति विद्या निकेतन।
जिम्मेदारी किसकी
संचालकों द्वारा दिए दस्तावेज के जांच की जिम्मेदारी बीआरसी व नोडल अधिकारियों की है। डीपीसी ने भी इस सूची को राशि के लिए मंजूर कर दिया। 2015-16 से 2019-20 तक शहर के प्राइवेट स्कूलों को 18 करोड़ 78 लाख रुपए आरटीई फीस के रूप में दिए गए।
अधिकारी बोले- दोषियों पर कार्रवाई करेंगे
जिला पंचायत सीईओ वंदना शर्मा ने कहा कि मामला संज्ञान में आया है। जांच कर संबंधित स्कूल संचालक के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। वहीं तत्कालीन डीपीसी अक्षयसिंह राठौर का कहना है कि विद्यार्थियों का सत्यापन मुख्य रूप से स्कूल संचालक और नोडल अधिकारी करते हैं। डीपीसी उसी सूची को बढ़ा देते हैं। मामले की जांच होना चाहिए।