मध्यप्रदेश। माध्यमिक शिक्षा मंडल ने 10वीं और 12वीं बोर्ड के नतीजे गुरुवार को जारी कर दिए। इंदौर जिले का बारहवीं का रेगुलर स्टूडेंट का नतीजा 56% रहा। यह पिछले साल से 24 प्रतिशत कम है, जबकि दसवीं का रिजल्ट पिछले साल की तुलना में बेहतर है।
इंदौर से इस बार दसवीं और बारहवीं दोनों कक्षाओं में स्टूडेंट्स ने प्रदेश की मेरिट में अपना स्थान बनाया है। 10वीं में तो प्रदेश में पहले और दूसरे नंबर पर इंदौर के छात्र-छात्राएं हैं। टॉपर स्टूडेंट्स में किसी के पिता मैकेनिक है तो किसी के माता-पिता हीरा खदान में मजदूरी करते हैं।
बच्चों की सफलता पर पेरेंट्स का क्या रिएक्शन रहा, आगे टॉपर क्या करना चाहते हैं। आज के दौर में भी टॉपर सोशल मीडिया में एक्टिव है या नहीं जानिए सबकुछ…उन्हीं की जुबानी…।
सोशल मीडिया पर नहीं, कोई सब्जेक्ट टफ नहीं, सभी को बराबर समय दिया
12वीं में कॉमर्स संकाय में स्टेट में 5वें नंबर पर आने वाली खुशी जायसवाल का कहना है कि “ये तो लग रहा था कि अच्छे प्रतिशत बन सकते हैं लेकिन इतना अच्छा रिजल्ट आएगा ये नहीं सोचा था। पढ़ाई की टाइमिंग को लेकर कभी ध्यान नहीं दिया।
स्कूल से आने के बाद घर के काम में मां का हाथ बंटाती। फिर अधिकांश समय पढ़ाई ही करती थी। कभी टाइम-टेबल बनाकर पढ़ाई नहीं की। टफ सब्जेक्ट जैसा तो कुछ नहीं था। सभी सब्जेक्ट की पढ़ाई के लिए बराबर टाइम दिया। आगे मुझे सीए बनना है इसलिए सीए की एग्जाम की तैयारी करने का सोचा है।
पापा की करीब 6 साल पहले ही डेथ हो गई थी। जो भी मुझे करना है, उसके लिए मम्मी सपोर्ट करती है। मुझे ड्रॉइंग करना पसंद है और मेथ्स मेरा पसंदीदा सब्जेक्ट है। मैं सोशल मीडिया पर एक्टिव नहीं हूं। सिर्फ वॉट्सएप ही चलाती हूं, क्योंकि उस पर स्कूल और टीचर के मैसेज आते हैं। टीचर्स ने भी बहुत सपोर्ट किया। मोटिवेट भी करते थे।
बेटी की सफलता पर मां शिवकुमारी जायसवाल ने कहा कि “बीमारी के चलते खुशी के पिता का निधन हो गया। मेरी इच्छा ये ही थी कि बच्चे पढ़ें-लिखें, काबिल बनें। कुछ बनने के लिए कभी खुशी से नहीं कहा। बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी है। हाट-बाजार में चने-परमल बेचकर परिवार का खर्च चलता है। बड़ा बेटा इसमें मदद करता है। आज अगर खुशी के पिता होते तो बहुत खुश होते।”
टीचर की सलाह मानी, देर रात की जगह सुबह जल्दी उठकर पढ़ने लगा
आकाश पांडेय 12वीं में कॉमर्स संकाय में प्रदेश में तीसरे नंबर पर रहे हैं। आकाश का कहना है कि “सुपर 100 में चयन होने के बाद मैं 11वीं से मल्हार आश्रम में पढ़ाई कर रहा हूं। उम्मीद तो थी कि मेरिट में नंबर आएगा। शुरू में इकोनॉमिक्स सब्जेक्ट में बहुत प्रॉब्लम आई थी लेकिन बाद में टीचर का बहुत अच्छा सपोर्ट रहा तो सब्जेक्ट आसान लगने लगा।
मैं रीवा का रहने वाला हूं और यहां हॉस्टल में रहता हूं। मेरे साथ एक रूम में तीन-चार दोस्त रहते हैं। पढ़ते-पढ़ते बोर हो जाते थे तो आपस में 10-15 मिनट बात कर लेते थे। थोड़ा कैंपस में घूम लेते थे, इससे दिमाग तरोताजा हो जाता था। इसके बाद फिर से आकर पढ़ाई करने लगते थे।
शुरू-शुरू में देर रात तक पढ़ाई करता था। फिर स्कूल टीचर ने समझाया कि सुबह जल्दी उठकर पढ़ाई करना चाहिए। फिर मैंने उनके कहे अनुसार टाइम टेबल सेट कर लिया। जो स्कूल में पढ़ाते थे, उसके नोट्स बनाकर रिवाइज करता था। एग्जाम के दौरान नोट से ही रिवाइज किया।
मां अर्चना पांडेय हाउस वाइफ हैं और पिता प्रदीप पांडेय बैंगलुरू में जॉब करते हैं। भइया और मम्मी रीवा में ही रहते हैं। सीए की तैयारी चल रही है साथ ही फॉरेन से फायनेंस का कोर्स करना चाहता हूं। सोशल मीडिया में एक्टिव नहीं हूं। सिर्फ वॉट्सऐप चलाता हूं, क्योंकि उस पर नोट्स लेना होते हैं। फेसबुक, इंस्टाग्राम कुछ भी नहीं चलाता हूं।
माता-पिता पन्ना में हीरा खदान में करते हैं काम
कमल सिंह यादव की 12वीं में कॉमर्स संकाय में प्रदेश में 7वीं रैंक है। सुपर 100 में चयन के बाद मल्हारश्रम स्कूल में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। कमल का कहना है कि “मुझे 95 प्लस परसेंट आने की उम्मीद थी। और उसी के आसपास नंबर आए हैं।
मैंने सोचा था मेरिट में स्कूल से नाम आना चाहिए। वो आ चुका है। थोड़ा नीचे आया लेकिन कोई बात नहीं मेरा भाई (स्कूल का दोस्त आकाश पांडेय एमपी में थर्ड रैंक) ऊपर आया है तो बहुत अच्छी बात है। मैं ऐसी जगह से आता हूं जहां लोग पूछते हैं कि तुम पास हुए या फेल, मेरिट नहीं जानते हैं।
उनको मेरिट से कोई मतलब नहीं रहता है। घर में एक भाई है, उसने आर्मी का एग्जाम दिया था, वो क्लियर कर लिया है। एक बड़ी बहन है, उनकी शादी हो चुकी है। आगे सीए करने का सोचा है। पढ़ते-पढ़ते बोर हो जाता तो दोस्तों से मिलता था या क्रिकेट खेलने चले जाता था।
माता-पिता (कल्लू बाई और लखन सिंह यादव) खेतीहर मजदूर हैं। वे पन्ना में हीरा खदान में काम करते हैं। दिन के 200-300 रुपए कमाते हैं। उसी से हमारा घर चलता है। मेरे पापा चाहते हैं कि मैं कलेक्टर या आर्मी ऑफिसर बनूं।
उनका यही मानना है कि जो कुछ करना है करो, पढ़ाई में आगे रहना। लास्ट में नहीं रहना है। या तो सबसे आगे रहना या पढ़ाई छोड़ देना। सरकार का साथ मिला तो ठीक वर्ना आगे एजुकेशन लोन लेकर पढ़ाई करूंगा।
बेटी की सफलता सुन मैकेनिक पिता की आंखों में आ गए आंसू
कक्षा 10वीं में प्रदेश में दूसरे स्थान पर आने वाली इंदौर की प्राची गढ़वाल का कहना है कि “मुझे उम्मीद तो थी कि अच्छे परसेंट आएंगे लेकिन सेकंड पोजिशन आएगी ऐसी उम्मीद नहीं थी। पेरेंट्स ने ही पहले रिजल्ट देखा था, उन्होंने ही मुझे बताया। वो भी बहुत खुश है, मैं भी बहुत खुश हूं। रोजाना चार से आठ घंटे पढ़ाई करती थी। मेथ्स मेरा फेवरेट सब्जेक्ट है, वो मुझे आसान लगता है।
पढ़ने को लेकर मेरा दिन और सुबह का शेड्यूल था। सुबह 4 बजे उठकर पढ़ती थी और रात को 10 से 11 बजे के बीच में सो जाती थी। पढ़ाई करते-करते बोर हो जाती थी तो थोड़ा बहुत टीवी देख लेती थी, ज्यादा नहीं। अब आगे रुकना नहीं है। पीसीएम लेकर आईआईटी की तैयारी करूंगी।
वाट्सएप थोड़ा बहुत यूज करती हूं। वो भी पढ़ाई के लिए क्योंकि नोट्स या सब्जेक्ट्स मटेरियल सब उसी पर भेजते हैं। उसके अलावा फेसबुक, इंस्टाग्राम कुछ भी नहीं चलाती हूं। पिता हुकुमचंद गढ़वाल मैकेनिक हैं और मां प्रीति गढ़वाल हाउस वाइफ है। एक छोटी बहन है और एक भाई है।”
वहीं प्राची की सफलता पर मां प्रीति का कहना है कि “बेटी बहुत अच्छे नंबर से पास हुई है। उसने बहुत मेहनत की थी। उसका उसी हिसाब से रिजल्ट आया है। पढ़ाई में ध्यान देना, मोबाइल नहीं चलाना। टीवी नहीं देखना। उसका शुरू से अभी तक का रिजल्ट ऐसा ही रहा है।
पढ़ाई में शुरू से ही अच्छी रही है। कभी कोचिंग नहीं की। स्कूल और सेल्फ स्टडी से ही अच्छे नंबर लेकर आई। हमने तो कभी उससे कुछ नहीं कहा कि उसे क्या बनना है। उसे फ्री कर रखा है, जो उसे बनना हो। इतने अच्छे नंबरों से पास होने की खबर सुनी तो प्राची के पापा की आंखों में आंसू आ गए। ऐसा पता नहीं था कि प्राची स्टेट लेवल पर आ जाएगी। मैंने 12वीं की है और प्राची के पापा 10वीं तक पढ़े हैं।”
उम्मीद थी प्रदेश की मेरिट में टॉप 5 में जगह बना लूंगा
एमपी बोर्ड एग्जाम में दसवीं में प्रदेश में टॉप करने वाले मृदुल पाल का कहना है कि 11वीं में पीसीएम लेकर आगे जेईई की पढ़ाई करूंगा। सपना सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने का है। उम्मीद थी कि रिजल्ट अच्छा रहेगा और प्रदेश की मेरिट में टॉप फाइव में जगह बना लूंगा।
साल भर नियमित रूप से पढ़ाई की। रोजाना का टारगेट लेता था, उसी के हिसाब से पढ़ता था। चैप्टर के अनुसार रणनीति बनाता था, घंटों को कभी महत्त्व नहीं दिया। कभी एक घंटे तो कभी दिनभर पढ़ता था। एग्जाम के पहले तो कई बार दिनभर पढ़ाई करता था।
एग्जाम के पहले सुबह रिवाइज जरूर करता था। स्कूल के अलावा रोजाना दो-तीन घंटे पढ़ाई की थी। सेल्फ स्टडी ही की थी, कहीं कोचिंग नहीं गया। पिता यशवंत क्लब में स्विमिंग पुल इंचार्ज है। मां घर में टेलरिंग का काम करती है। एक बड़ा भाई भी है।
स्विमिंग करना हॉबी है। सोशल मीडिया से दूर रहता हूं। वाट्स एप चलाता हूं सिर्फ वह भी डाक्यूमेंट्स के लिए, फेसबुक और इंस्टाग्राम से दूर हूं। साल भर मौज मस्ती के साथ पढ़ाई की। कभी पढ़ाई का तनाव नहीं लिया। संडे को क्रिकेट खेलने जाता हूं। शादी और इवेंट्स में भी जाता हूं।