बोर्ड परीक्षा 27 मार्च को समाप्त हो रही है। अब सवाल यह उठाया जा रहा है कि जिले में इस साल एक भी नकल प्रकरण क्यों नहीं बना जबकि पड़ोसी जांजगीर-चांपा जिले में दर्जनभर नकल प्रकरण दर्ज कर वहां के उड़न दस्ते ने अपना बेस्ट परफारमेंस साबित किया है।
बताया जाता है कि पड़ोसी जांजगीर-चांपा जिले में नकल रोकने के उद्देश्य से रोजाना सघन और आकस्मिक जांच अभियान चलाया जाता रहा। जिसमें खुद दूसरों को निर्देश न देकर जिला शिक्षा अधिकारी तक मैदानी अमले के साथ निकलते रहे। 25 मार्च को 12वीं गणित के पेपर में भी शासकीय स्कूल सलखन में एक नकलची को दबोचा गया। वहीं अंबिकापुर सूरजपुर बैकुंठपुर बलरामपुर क्षेत्र में नकल पकड़ने के लिए कलेक्टर तक स्कूलों का निरीक्षण करते रहे। इस लिहाज से जिले में बनाए गए उड़न दस्ते का परफारमेंस काफी निराशाजनक रहा।
शिक्षा विभाग से जुड़े लोगों का कहना है कि ज्यादातर उड़न दस्ते केवल शहरी क्षेत्र में घूम कर अपनी ड्यूटी निभाते रहे। पड़ोसी जांजगीर-चांपा जिले के डीईओ ने 17 मार्च को दसवीं विज्ञान के पेपर में बुड़गहन में गाइड लेकर बैठे दो नकलचियों को धर दबोचा था। यहां छह उड़न दस्तों की टीम नकल नहीं पकड़ सकी। सवाल उठता है कि क्या बिलासपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में नकल नहीं हो रही थी ?ग्रामीण क्षेत्रों में उन्हें स्कूलों में परीक्षार्थियों को केंद्र दिया गया है। केवल परीक्षा केंद्र अध्यक्ष बदल देने से परीक्षा की पारदर्शिता को लेकर संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। इस लिहाज से बिलासपुर जिले के नकल विरोधी दस्तों को नगर की बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में जांजगीर चांपा के फ्लाइंग स्कॉट की तर्ज पर अकस्मात छापा मारने की रणनीति अपनानी चाहिए थी। तभी यहां का दस्ता नकल पकड़कर अपने अस्तित्व को सार्थक कर सकता था।ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्राध्यक्ष पर्यवेक्षक एवं गांव वालों के सहयोग से सामूहिक नकल का भी इतिहास रहा है। इस तथ्य की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए थी।