नही जाने वाले थे पहले फिर अचानक आंचलकुंड धाम पहुंचे अमित शाह, जानिए क्यों

नही जाने वाले थे पहले फिर अचानक आंचलकुंड धाम पहुंचे अमित शाह, जानिए क्यों

एकदिन पहले यानि शनिवार को देश के गृहमंत्री अमित शाह मध्यप्रदेश में छिंदवाड़ा के दौरे पर थे। पहले खबर आई कि वे आंचलकुंड धाम नहीं जाएंगे। फिर खबर आती है कि गृहमंत्री छिंदवाड़ा में सभा के संबोधन के बाद आंचलकुंड पहुंचे। अमित शाह ने मंच से कहा– मैं आंचलकुंड धाम को प्रणाम कर सभा को संबोधित करता हूं।

आखिर क्या खास है इस जगह में जो शाह ने अपने संबोधन में सबसे पहले वहीं का जिक्र किया? साथ ही एक बार दौरा स्थगित होने के बाद फिर से अचानक उनके आंचलकुंड धाम जाने के पीछे भी कई राजनीतिक संकेत छिपे हैं। दरअसल, चार दशक पहले कमलनाथ ने जिस आंचलकुंड धाम से राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी, उसी जगह से गृहमंत्री अमित शाह भी उन्हें घेरने की रणनीति का शंखनाद किया है।

शनिवार को छिंदवाड़ा के आंचल कुंड दरबार पहुंचने पर गृहमंत्री अमित शाह ने दरबार से आदिवासी समाज के 25 लोगों को सम्मानित किया।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह शनिवार को छिंदवाड़ा दौरे पर थे। वे आंचलकुंड धाम में भी दर्शन करने पहुंचे। जहां उन्होंने पूजा-अर्चना की।

पहले जानते हैं आदिवासी समाज के लिए आस्था के केंद्र आंचलकुंड धाम की कहानी…

आंचलकुंड धाम बाबा कंगाल दास ने स्थापित किया था। ये जगह आदिवासियों की आस्था का केंद्र है। बाबा की तीसरी पीढ़ी के सेवादार सुखराम दास जी महाराज ने बताया कि करीब 100 साल पहले कंगाल दास बाबा की जिद पर खंडवा के धूनी वाले दादा जी ने इस आंचलकुंड में धूनी जलाई थी। सुखराम बताते हैं कि कंगाल दास बाबा मेरे पिताजी के परदादा थे, जो आदिवासी परिवार सिंगरामी इनवाती के परिवार में जन्मे थे।

कंगाल दास बड़े होकर खेती-मजदूरी करने लगे। घर के कामकाज से समय निकालकर वे नरसिंहपुर जाया करते थे। वहां साईं खेड़ा गांव में धूनी वाले दादा जी के सानिध्य में रहकर उपासना करने लगे। कुछ दिन उनके साथ रहने के बाद वे वापस आ जाते, लेकिन 10 से 15 दिन मुश्किल से आंचलकुंड में रहते। फिर परिवार को छोड़कर 150 किलोमीटर दूर पैदल चलकर दादाजी दरबार साईंखेड़ा पहुंच जाते। दादाजी केशवानंद महाराज व हरिद्वार भोले भगवान की सेवा में जुटे रहते।

यह क्रम करीब 15 वर्षों तक चलता रहा, फिर कंगाल दास जी ने आंचलकुंड में अपने घर के पास आंगन में छोटी सी कुटिया बना ली। यहां दादाजी केशवानंद महाराज व हरिहर भोले भगवान की प्रतिमाओं के साथ मां नर्मदा की पूजा करने लगे। इसी कुटिया में उन्होंने ध्वज पताका लगा दिया, जो दूर से दिखाई देता था। यहां कंगाल दास जी से मिलने और सत्संग करने आसपास के लोग आने लगे।

कंगाल दास जी महाराज के दूसरी पीढ़ी के सेवादार उनके पुत्र रतनदास जी महाराज ने इस भव्य मंदिर की शुरुआत 1985 में की थी। वर्ष 2000 में यह मंदिर बनकर तैयार हुआ।

गांव के कुछ लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगी। अकारण ही लोगों ने कंगाल दास जी का विरोध शुरू कर दिया। कंगाल दास जी इसे बर्दाश्त नहीं कर सके। उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा। वे साईं खेड़ा श्री दादा जी दरबार में पहुंचकर उनके चरणों में गिर पड़े। कंगाल जी ने कहा कि आंचलकुंड में किसी को कुछ नहीं कहता। किसी को परेशान नहीं करता। किसी को सताता नहीं सिर्फ आपकी पूजा-आरती करता हूं। आपका गुणगान करता हूं। इसके बाद भी कुछ लोग मेरा विरोध कर रहे हैं। अब मैं यहां से कहीं नहीं जाऊंगा।

धूनी वाले दादा जी ने कहा- इसमें विचलित होने की जरूरत नहीं, तुम्हें सब सहन करना है। तुम्हारे लिए यही साधना है, तभी तो तुम साधु बनोगे? कंगालदास जी ने मना कर दिया कि मैं वापस नहीं जाऊंगा। बार-बार समझाने के बाद कंगाल दास जी ने शर्त रखी कि मैं तभी जाऊंगा, जब आप मेरे साथ चलेंगे। जिद पर अड़े कंगाल दास जी को दादाजी ने भरोसा दिलाया कि तुम चलो, हम आ रहे हैं। महाराज जी की बात सुनकर कंगालदास जी पैदल चलकर तीन दिन में आंचलकुंड पहुंचे। यहां पाया कि दादाजी गांव के पूर्व दिशा में खेड़ापति माई की मढ़िया में बैठे हैं।

यहां कंगाल दास जी ने उनकी पूजा व आरती की। दोनों दादाजी ने आंचलकुंड में धूनी जलाई। धूनी वाले दादा जी ने कंगाल दास जी से कहा कि धूनी हमेशा जलती रहनी चाहिए। यहां आने वाले लोगों को भभूति देते रहना, जिससे उनके दुख दर्द दूर होंगे। अभी कंगाल दास जी की तीसरी पीढ़ी के सुखराम दास महाराज उनके भाई गणेश महाराज और मनेश महाराज दरबार के सेवादार हैं।

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