इस गोल्ड मेडलिस्ट की जितनी उम्र, उससे ज्यादा कामयाबियां​,लॉकडाउन में खूब सोती थी, परेशान मां ने अखाड़े भेजा; CM ने बुलाकर किया सम्मान

इस गोल्ड मेडलिस्ट की जितनी उम्र, उससे ज्यादा कामयाबियां​,लॉकडाउन में खूब सोती थी, परेशान मां ने अखाड़े भेजा; CM ने बुलाकर किया सम्मान

आपको मिलवाते हैं ऐसी बच्ची से, जिसकी उम्र तो सिर्फ 14 साल है, लेकिन जब हाथ में लाठी पकड़कर घुमाती है, तो अच्छे-अच्छे दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं। जितनी इस बच्ची की उम्र है, इससे ज्यादा कामयाबियां इसने अपने नाम कर लीं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक भोपाल बुलाकर इस बेटी का सम्मान कर चुके हैं।

नाम है- वंशिका माहेश्वरी। नेशनल लेवल पर लाठी चलाने में गोल्ड जीत चुकी हैं। इंटरनेशनल लेवल पर ब्रॉन्ज मेडल हासिल कर चुकी हैं। वंशिका के लाठी चलाने के सीखने के पीछे इंटरेस्टिंग किस्सा जुड़ा हुआ है। आज हम आपको यही किस्सा बताने जा रहे हैं।

मार्च 2020… कोविड लॉकडाउन में सबकुछ बंद था। घर में ही रहो, एक रूम से दूसरे…ज्यादा रूम हैं तो तीसरे में चले जाओ। बच्चों ने घर पर रहकर ऑनलाइन पढ़ाई की। बोर होने पर टीवी देखो …पर कितनी देर तक, कुछ बच्चों ने गैजेट्स की लत लगा लगी, लेकिन बैतूल की वंशिका को सोने की लत लग गई। साफ कहें तो वह आलसी हो गई। दैनिक भास्कर से बात करते हुए वंशिका बताती है, मैं जब ज्यादातर समय सोने में गुजारने लगी, तो मां भी परेशान हो गईं। उन्होंने मुझे अखाड़ा जॉइन करा दिया। बस यहीं से उनकी लाइफ में सक्सेस का टर्न आया गया।

वंशिका माहेश्वरी नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर मेडल और ट्रॉफी जीत चुकी है।

आगे की पूरी बात, वंशिका की ही जुबानी…

कोरोनाकाल में मैं सुबह देर तक सोती रहती थी। मां मेरी इस आदत से परेशान थीं। देर तक सोने के लिए मां की डांट भी पड़ती थी, लेकिन मेरा सोना जारी रहता था। बिस्तर छोड़ने का मन नहीं करता था। लगता था कुछ देर और सो लूं …बस 5 मिनट और …10 मिनट और…। मेरी दोस्त के पापा अखाड़ा चलाते हैं। कोरोना की वजह से लगी पाबंदियां हटीं तो मेरे ज्यादा सोने से परेशान मां ने उनसे बात की। बोलीं- बेटियां सुबह देर तक सोती रहती हैं, आप अखाड़े में उनके लिए कुछ कीजिए।

बैतूल में पहली बार लाठी चलाने वाली लड़कियों का ग्रुप तैयार हुआ। मैंने अखाड़े में जाना शुरू कर दिया। दोस्त के पापा ने मुझे लाठी चलाना सिखाया। पहले स्कूल लेवल पर लाठी चलाने में अवॉर्ड जीता। इसके बाद ब्लॉक, जिला, संभाग, स्टेट और नेशनल लेवल पर खेला। नेशनल लेवल पर मध्यप्रदेश की ओर से मैंने पहली बार गोल्ड जीता।

नेपाल में इंटरनेशनल लेवल पर लाठी चलाने में मैंने ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया। अभी हरिद्वार में हुए नेशनल लेवल कॉम्पिटिशन में गोल्ड और सिल्वर मेडल जीते हैं। जिन लोगों को मैं बताती हूं कि मैं लाठी चलाती हूं और इसी गेम में मुझे गोल्ड मेडल मिले हैं, तो लोग चौंक जाते हैं कि लाठी भी कोई गेम होता है।

दूसरा लॉकडाउन लगा तो घर पर ही प्रैक्टिस की। पाबंदियों में ढील मिली तो फिर अखाड़े जाना शुरू कर दिया। दिन की शुरुआत अखाड़े में लाठी चलाने की प्रैक्टिस से होती है। सुबह 4 बजे से सुबह 8 बजे तक प्रैक्टिस करती हूं। इसके बाद का समय पढ़ाई और अपने दूसरे कामों को देती हूं। सही समय पर सो जाती हूं। सुबह 3 बजे तक बिस्तर छोड़ देती हूं।

(जैसा वंशिका माहेश्वरी ने दैनिक भास्कर को बताया)

वंशिका ने नेशनल लेवल पर कई पुरस्कार जीते हैं।

पेंटिंग और भरतनाट्यम भी करती हैं वंशिका … बनना चाहती हैं डॉक्टर
अखाड़े में लाठी चलाने की ट्रेनिंग ले चुकीं वंशिका 9th की छात्रा हैं। वह लाठी चलाने के अलावा शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम भी करती हैं। बकौल वंशिका, भरतनाट्यम में वह पहली स्टेज की ट्रेनिंग पूरी कर चुकी है। इसके अलावा वह पेंटिंग भी करती है। डॉक्टर के रूप में अपना करियर बनना चाहती है।

पिता बिजनेसमैन, मां ट्यूशन टीचर
बैतूल की रहने वाली वंशिका के पिता कंस्ट्रक्शन मटेरियल कारोबारी हैं। उनके कारखाने में सीमेंट, चौखट और खिड़की समेत दूसरे मटेरियल मिलते हैं। मां होम ट्यूटर हैं। घर पर क्लास 6th से 10th तक के स्टूडेंट्स को ट्यूशन पढ़ाती हैं।

कोच बोले, दशहरा के बाद से वंशिका की लाठी रुकी ही नहीं

वंशिका के कोच विनोद बुंदेले हैं। वे बताते हैं, बैतूल में उन्होंने छोटे भाई की चार बेटियों और पहले बैच की 5-6 लड़कियों को लाठी सिखाना शुरू किया। बैतूल की व्यायामशाला में दशहरे के दिन 2021 में पहला डेमोनस्ट्रेशन हुआ। पूरे पारंपरिक शिवकालीन शस्त्रकला का प्रदर्शन किया। इसमें लाठी डबल, लाठी, तलवार, पटा, भाला, अंगार की बनेठी जैसी कलाओं को दिखाया। इसके बाद तो वंशिका की लाठी रुकी नहीं। उसने स्कूल, ब्लॉक, जिला, संभाग और स्टेट तक खेला। यहां तक कि इंटरनेशनल लेवल पर उसने ब्रॉन्ज मेडल जीता।

वंशिका के कोच विनोद बुंदेले बताते हैं कि बैतूल में छोटे भाई की चार बेटियों और पहले बैच की 5-6 लड़कियों को लाठी सिखाना शुरू किया था।

बुंदेले बताते हैं कि वंशिका ने स्कूल लेवल से स्टेट लेवल तक जैसे ही लाठी के खेल में मेडल जीते, उसकी खबर सोशल मीडिया के जरिए मप्र ट्रेडिशनल लाठी स्पोर्ट फेडरेशन के अध्यक्ष मनोज दुबे तक पहुंची। उन्होंने मुझसे संपर्क किया। उन्होंने एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर से बात कर लाठी को पारंपरिक खेलों में शामिल कराया।

अखाड़े में लाठी चलाने की ट्रेनिंग ले रही वंशिका को जब राष्ट्रीय स्तर के लाठी कॉम्पिटिशन में अवॉर्ड मिलने लगे, तो अखाड़े में ट्रेनिंग लेने वालों की भीड़ लग गई। कुछ ही दिन में अखाड़े के सामने की सड़क पर ट्रेनिंग लेने आए युवक – युवतियों को लाठी चलाना सिखाया। अखाड़े की प्रसिद्धि वंशिका को मेडल मिलने के बाद हुई है।

मां बोली- पहले लगता था बेटियां बर्डन होती है, लेकिन ऐसा नहीं
मेरा नाम मधु माहेश्वरी है। मैं वंशिका की मां हूं। पहले हमें ऐसा लगता है कि बेटियां घर में जन्म लेतीं हैं तो बर्डन होता है। मैं खुद चार बहनों में एक हूं, लेकिन हमारे मां-बाप ने हमें कभी बोझ नहीं समझा। मुख्यमंत्री जी की लाडली लक्ष्मी योजना आने से कोई पिता अपनी बेटी को बोझ नहीं समझता। 2008 में वंशिका का जन्म हुआ, उसके पहले ही ये योजना शुरू हो गई थी। वंशिका डॉक्टर बनना चाहती है। हम सोचते थे कि इसका सपना कैसे पूरा करेंगे, लेकिन अब मुख्यमंत्री जी ने इसके लिए भी व्यवस्था कर दी है।

हमारे परिवार में तो बेटियों को बहुत ज्यादा पूछा जाता है। हमारे ससुर जी छह भाई और एक बहन थे हमारे यहां बेटियों को बहुत लाड़-प्यार से रखा जाता है, लेकिन गांव में यह देखा है कि बेटियों के साथ बहुत भेदभाव होता है। कई बार लोगों को देखा कि बेटी होने के बाद मां-बाप खुश नजर नहीं आते, लोगों को लगता है कि बेटी आ गई है तो अब खर्च करना पड़ेगा।

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