42 सालों में 600 बच्चों की पिता बन उडा रहें हैं जिमेदारी,अभाव परेशानियों को नेक काम ने नहीं बनने दी बाधा,मासूमों को दिया सहारा…

42 सालों में 600 बच्चों की पिता बन उडा रहें हैं जिमेदारी,अभाव परेशानियों को नेक काम ने नहीं बनने दी बाधा,मासूमों को दिया सहारा…

गरियाबंद। दुनिया आज फादर्स डे को सेलिब्रेट कर रही है। इस मौके पर हम जानेंगे गरियाबंद जिले के देवभोग से 16 किलोमीटर की दूरी पर रहने वाले ‘पापा जी’ के बारे में, जो एक-दो नहीं बल्कि 600 बच्चों के पिता हैं। इन बच्चों के साथ उनका खून का रिश्ता तो नहीं है, लेकिन इन अनाथ बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उठाकर वे इनके अपने पिता से भी बढ़कर हो गए हैं। इनके अनाथ आश्रम में छत्तीसगढ़ राज्य के 100 से भी ज्यादा बच्चों का पालन-पोषण हो चुका है।

पति पत्नी चलाते हैं आश्रम

पापा जी यानी श्याम सुंदर दास (60)… ये गरियाबंद जिले के देवभोग से महज 16 किमी दूरी पर कालाहांडी (ओडिशा) के धरमगढ़ के गंबारीगुड़ा गांव में रहते हैं। यहीं पर रहकर ये अपना अनाथ आश्रम ‘जसोदा’ चलाते हैं, जिसमें 6 दूधमुंहे बच्चों समेत 100 बच्चों का लालन-पालन इनकी निगरानी में होता है। यहां अनाथ बच्चे आते गए और इनकी जिम्मेदारी श्याम सुंदर उठाते गए। इस तरह से पिछले 42 सालों में ये 600 बच्चों के पिता बन गए। इनमें से 37 बेटियों और 17 बेटों की इन्होंने शादी भी की। 8 बेटे सरकारी नौकरी कर रहे हैं।

100 से जादा बच्चे हैं आश्रम मे

श्याम सुंदर दास ने बताया कि बचपन में ही इन्होंने अपने पिता को खो दिया था। 1980 में जब वे 18 साल के हुए, तो धर्मगढ़ रोड पर उन्हें एक बच्चा पेड़ के नीचे रोता हुआ मिला। वे उसे उठाकर घर ले गए। उनकी मां जसोदा ने बच्चे का पालन-पोषण शुरू किया। उन्होंने उसी समय से ऐसे बच्चों की सेवा करने की ठान ली थी।

6 महीने के भीतर 4 बच्चे मिले

छोटे बच्चे भी हैं अनाथ आश्रम मे

उस समय श्याम सिलाई का काम कर रहे थे। मजदूरी करने देवभोग के कूम्हडाई गांव में भी रहते थे। उन पर बच्चा चोरी का आरोप भी लगा, जेल जाने की नौबत तक आ गई, लेकिन कुछ समाज सेवियों के बयान ने श्याम सुंदर दास को कानूनी शिकंजे से बचा लिया। 1984 में मां जसोदा भी चल बसी। 90 के दशक में कच्चे मकान में बगैर किसी सहयोग से 40 से ज्यादा बच्चों की परवरिश की।

शादी के लिए कोई बेटी देने को तैयार नहीं था

एक साथ खाते है बच्चे खाना…

अनाथ आश्रम के संचालन के लिए जीवन संगिनी की जरूरत थी, लेकिन इतने बड़े काम को देखते हुए कोई अपनी बेटी को देने के लिए तैयार नहीं था। इसके बाद उन्होंने कस्तूरी देवी से लव मैरिज की। शुरू के 15 साल बच्चों के पालन-पोषण के लिए श्याम ने टेलर से लेकर मजदूरी तक का काम किया। इस काम को लेकर जुनून को देखकर 3 बच्चों की मां बन चुकी कस्तूरी 2 साल तक बच्चों समेत दूर चली गई। घर में इस बात पर तनाव होता था, लेकिन बाहर के लोग उनके इस जज्बे से बहुत प्रभावित थे।

बच्चे श्याम सुंदर को पापा और उनकी पत्नी कस्तूरी को मां कहते हैं।

बाद में पत्नी कस्तूरी को भी इस नेक काम का आभास हुआ। फिर दोनों ने अनाथ बच्चों की सेवा शुरू कर दी। नौबत ऐसी आ गई कि इनके खुद के बच्चों को लालन-पालन के लिए उनके छोटे भाई ले गए। 2008 के बाद इन्हें सरकारी मदद मिलनी शुरू हुई। भवन और बाउंड्री वॉल बनाए गए। बच्चों की परवरिश के लिए मामूली रकम से सरकारी फंडिंग तब शुरू हुई, जब तक वे 200 बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा कर चुके थे। समय के साथ छत्तीसगढ़ और ओडिशा के 150 से ज्यादा पति-पत्नी ने जसोदा अनाथालय से बच्चे गोद लिए।

कई बच्चों को उनके माता-पिता ही छोड़ जाते हैं

तिरंगा भी लगा ही आश्रम के आंगन मे

अभी जसोदा आश्रम में करीब 100 बच्चे हैं। इनमें से 30 से ज्यादा बच्चे तो ऐसे हैं, जो जन्म से दिव्यांग हैं और उन्हें गरीबी के चलते उनके माता-पिता ही यहां छोड़कर चले गए हैं। ओडिशा में मौजूद इस आश्रम ने देवभोग अंचल के 100 से भी ज्यादा अनाथ बच्चों को पिछले 42 सालों में आश्रय दिया। सभी बच्चे श्याम सुंदर को पापा जी व उनकी पत्नी कस्तूरी को मां कहते हैं। दंपति 3 आया और 5 कर्मचारियों के साथ मिलकर अपना अनाथ आश्रम चलाते हैं और 24 घंटे बच्चों की सेवा में लगे रहते हैं।

श्याम सुंदर ने बताया कि ओडिशा सरकार की मदद से पिछले 15 सालों में आश्रम के लिए पर्याप्त भवन, बाउंड्रीवॉल बनी है। केवल 40 बच्चों के लालन-पालन के लिए मासिक 1800 रुपए प्रति सदस्य मिलता है। उनके 3 बेटों की कमाई का कुछ भाग और मिल रहे अपार जनसहयोग से बच्चों की परवरिश हो रही है। अब तक श्याम सुंदर दास 600 बच्चों का पालन-पोषण कर चुके हैं।

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