इंदौर। बिहार से आकर इंदौर में घरेलू काम कर रही 13 साल की एक मासूम को चाइल्ड लाइन ने मुक्त कराया है। मासूम के शरीर पर खून व चोट के निशान मिले हैं। वह काफी डरी और सहमी है। दंपती उसे तीन साल पहले बिहार से इंदौर लाए थे। यहां बच्ची से मनमाफिक काम कराते थे। चाइल्ड लाइन उसकी काउंसलिंग कर रही है।
चाइल्ड लाइन को सूचना मिली थी कि खुड़ैल क्षेत्र के 155 शिवालिक कालिंदी मिड टॉउन में राजन-सोनम गुप्ता दंपती के यहां एक 13 वर्षीय मासूम काम करती है। जिसे बाहर से लाकर काम कराया जा रहा है। दंपती उससे बालश्रम करवाते हैं। इससे मासूम की सेहत ठीक नहीं है।
इस पर मंगलवार को चाइल्ड लाइन, कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन से जितेन्द्र परमार, राहुल गोठाने, मंजू चौधरी, महिला बाल विकास विभाग से अशीष गोस्वामी, संदेश रघुवंशी, श्रम विभाग से श्रम निरीक्षक श्रेया झा, विशेष किशोर पुलिस इकाई से रामेश्वर चौधरी की टीम पुलिस के साथ मौके पर पहुंची।
टीम ने परिचय दिया तो दंपती सकपका गए। यहां टीम को 13 वर्षीय बालिका घरेलू काम करते हुए मिली। उससे पूछताछ की तो बताया कि वह जगदीशपुर भागलपुर, बिहार की रहने वाली है। यहां वह तीन साल से काम कर रही है।
दंपती उससे उनके बच्चों की देखरेख करवाना, खाना खिलाना, डस्टिंग, क्लीनिंग, खाना बनाना, जूते की पॉलिश करवाते हैं। बालिका के शरीर पर नाखून और चोट के निशान भी मिले हैं। पूछताछ में उसने दंपती द्वारा द्वारा मारपीट किए जाने से इनकार किया है। चाइल्ड लाइन का मानना है कि वह अभी डरी हुई है।
बालिका तीसरी तक पढ़ी है। यहां उसका स्कूल में एडमिशन भी नहीं कराया गया है। दंपती से पूछताछ की गई तो बताया कि वे बालिका के माता-पिता को हर महीने 6 हजार भेजते हैं। इसकी जानकारी मासूम को नहीं है। बाल कल्याण समिति ने बालिका को संरक्षण में लेकर संस्था में प्रवेश का आदेश दिया है।
उसका मेडिकल कराकर उसे एक संस्था में भेजने के साथ उसकी काउंसलिंग की जा रही है। इसके साथ ही दंपती की भूमिका की भी जांच की जा रही है।