लिवर डोनेट कर मां ने बेटे को बचाया, सब कुछ बेचकर भी नहीं जुटे 25 लाख, मां की मार्मिक अपील पर मिली आम लोगो ने की मदद…

लिवर डोनेट कर मां ने बेटे को बचाया, सब कुछ बेचकर भी नहीं जुटे 25 लाख, मां की मार्मिक अपील पर मिली आम लोगो ने की मदद…

रतलाम। 9 महीने कोख में रखने के बाद दुनिया में आए बेटे को फिर से नई जिंदगी देने के लिए एक मां ने वो सबकुछ किया, जो लगभग असंभव था। जमा पूंजी खत्म हुई, तो जेवर बेचे। यही नहीं, सुहाग की निशानी मंगलसूत्र तक बेच डाला। सोशल मीडिया पर मार्मिक अपील ने कई लोगों के दिलों को झकझोर दिया। मदद के हाथ बढ़े और नेक दिल इंसानों ने कुछ ही समय में 25 लाख की व्यवस्था कर दी। रुपए तो मिल गए, लेकिन लाख जतन के बाद भी डोनर नहीं मिला। बेटे को यूं दर्द से तड़पता मां से देखा नहीं गया। आखिरकार कलेजे के टुकड़े को एक बार फिर नई जिंदगी देने का फैसला किया। उसने खुद ही अपना लिवर बेटे को डोनेट कर दिया। अब बेटा मां के लिवर के सहारे भविष्य को बेहतर बनाने की तैयारियों में जुटा है।

मां के संघर्ष की कहानी

माता-पिता के संघर्ष की कहानी पिछले 11 साल से चल रही है। अंबेडकर नगर के रहने वाले अरुण कांबले के बेटे गौरव कांबले को बचपन से ही लिवर की बीमारी थी। डॉक्टरों ने गौरव के 8-10 साल का हो जाने पर लिवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी थी। गौरव के पिता अरुण कांबले जूते के शोरूम पर सेल्समैन थे। लिवर ट्रांसप्लांट के लिए उनके पास पर्याप्त रुपए भी नहीं थे। गौरव करीब 8 साल का हो चुका था। उसका लिवर सूजने लगा। तबीयत बिगड़ने पर माता-पिता उसे बड़ौदा और चेन्नई के अस्पताल लेकर पहुंचे।

बुआ नीतू साल्वे ने सागोद गांव स्थित मकान में गौरव और उसके माता-पिता को रखा।

कर्ज लेकर इलाज करवाया, लेकिन डॉक्टरों ने बताया कि गौरव का लिवर 80% तक खराब हो चुका है। डॉक्टरों के अनुसार उसकी जान बचाने के लिए लिवर ट्रांसप्लांट ही एक मात्र उपाय है। चेन्नई के निजी ट्रस्ट अस्पताल में लिवर ट्रांसप्लांट का खर्च करीब 25 लाख रुपए बताया। सब कुछ बेच कर भी परिवार इतने रुपए नहीं जुट सका। फिर भी मां ने हार नहीं मानी। मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से प्रदेश और केंद्र सरकार से बेटे को बचाने के लिए मार्मिक अपील की।

राज्य शासन की तरफ से जो मदद मिली, वह पर्याप्त नहीं थी। मार्मिक अपील का ऐसा असर हुआ कि सामाजिक संस्थाओं और अनाम मददगार लोगों ने 25 लाख रुपए का फंड जुटा दिया। अब ऑपरेशन के लिए पैसों का इंतजाम तो हो गया था, लेकिन लिवर ट्रांसप्लांट की जटिलता की वजह से गौरव की जान का खतरा टला नहीं था। मां की दुआ और संघर्ष का असर ऐसा हुआ कि गौरव आज स्वस्थ होकर मुस्कुराता हुआ रतलाम लौट आया है।

सुहाग की निशानी मंगलसूत्र तक बेच दिया

बेटे की गंभीर बीमारी के महंगे इलाज के लिए शुरुआत से ही माता-पिता संघर्ष कर रहे थे। पिता ने अपना मकान दो लाख रुपए में गिरवी रख दिया। वहीं, माता दीपिका कांबले ने ज्वेलरी और मंगलसूत्र भी बेच दिया। रुपयों का इंतजाम नहीं हो रहा था। लाचार माता-पिता परेशान हो रहे थे। सब कुछ बेच कर भी इतने रुपए नहीं जुटा पा रहे थे। यह उनके संघर्ष और जिद का ही परिणाम है कि कई मददगार सामने आए।गौरव का लिवर ट्रांसप्लांट ऑपरेशन सफल हुआ। बेटे गौरव को लिवर डोनेट कर रही मां के सामने दोहरी समस्या थी। छोटे बेटे यथार्थ को वह चेन्नई के अस्पताल में साथ नहीं रख सकती थी, इसलिए उसने यथार्थ को रतलाम में दादा के पास छोड़ दिया। करीब 3 महीने तक वह छोटे बेटे से दूर रही।

गौरव को क्रिकेट खेलना पसंद है। पिता के साथ दिनभर क्रिकेट खेलने की जिद करता है।

पिता और बुआ का मिला साथ

गौरव के पिता अरुण कांबले बताते हैं कि बेटे की खुशी के लिए वह कुछ भी कर सकते हैं। जब रुपयों की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी, तो टूटने लगे थे। पत्नी दीपिका और बहन नीतू से मिले हौसले ने उन्हें फिर खड़ा कर दिया। अरुण ने मकान गिरवी रख दिया। कुछ लोगों से 6 से 7 लाख रुपए कर्ज भी लिया है। हालांकि अरुण कहते हैं कि बेटा स्वस्थ है, तो वह मेहनत कर यह कर्ज लौटा देंगे। गौरव को लिवर ट्रांसप्लांट के बाद संक्रमण से बचाने के लिए स्वच्छ, हवादार और अलग कमरे में रखने की आवश्यकता थी। ऐसे में उसकी बुआ नीतू साल्वे ने सागोद गांव स्थित मकान में गौरव और उसके माता-पिता को रखा है। भावुक होकर नीतू साल्वे कहती हैं कि यदि जीवन भर भी उसे यहां रखना पड़े, तो वह रखेंगी।

स्वस्थ होकर घर लौटा गौरव खेल रहा क्रिकेट

लंबे संघर्ष और लिवर ट्रांसप्लांट की जटिल प्रक्रिया के बाद अब गौरव घर लौट चुका है। उसके चेहरे पर लाचारी वाली उदासी नहीं, बल्कि उम्मीद भरी मुस्कान है। माता-पिता और बुआ उसे बेहद प्यार करते हैं। ऑपरेशन और दवाओं के असर की वजह से गौरव ठीक से बोल नहीं पाता, लेकिन अब वह घर में शरारत और मस्ती भी खूब करता है। गौरव को क्रिकेट बहुत पसंद है। छोटे भाई और पिता के साथ दिनभर क्रिकेट खेलने की जिद करता है। गौरव का पसंदीदा क्रिकेटर रोहित शर्मा है। जिनके नाम की जर्सी भी उसने पिता से फरमाइश कर मंगवाई है। गौरव की इस मुस्कान के पीछे माता-पिता ही नहीं, बल्कि वह अनजान मददगार भी शामिल है, जिन्होंने दिल खोलकर कांबले परिवार की मदद की है।

यह बने मददगार

गौरव और उसके परिवार को मदद करने वालों की संख्या बहुत है, लेकिन इनमें से कोई भी नाम बताने को तैयार नहीं है। गौरव के माता-पिता और अन्य सोर्स के माध्यम से कुछ मददगार के नाम हासिल किए हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अंशुल सोनी और उनकी टीम कांबले परिवार के लिए फंड जुटाने से लेकर मीडिया और सोशल मीडिया पर इस परिवार की बात पहुंचाने का माध्यम बने।

पूर्व रेड क्रॉस चेयरमैन स्व. महेंद्र जी गादीया, इंदौर के समाजसेवी अनिल जी साठे, जिला युवक कांग्रेस अध्यक्ष मयंक जाट, चाइल्ड फाउंडेशन मुंबई, एकम फाउंडेशन मुंबई, मिलाप फाउंडेशन, हेल्पिंग हैंड टीम रतलाम-इंदौर अलीराजपुर जिले के जोबट गांव के ग्रामीण समेत ऐसे अनेक अनाम लोग, जो नाम नहीं बताना चाहते, इस कार्य में जुटे। गौरव के माता-पिता इन लोगों को भगवान का दर्जा देते हैं। गौरव के पिता कहते हैं कि हमारे लिए तो यही लोग भगवान की तरह हैं।

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