“रोका-छेका” से बचेगी फसल, बढ़ेगी आय, पशुधन की भी होगी अच्छी देखभाल

“रोका-छेका” से बचेगी फसल, बढ़ेगी आय, पशुधन की भी होगी अच्छी देखभाल

•             गोठानों में बढ़ेगा जैविक-खाद का उत्पादन

•             कृषि लागत होगी कम

  रायपुर, छत्तीसगढ़ में परंपरागत कृषि प्रणालियों को पुनर्जीवित करते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए राज्य सरकार ने सभी गांवों में “रोका-छेका” पद्धति को प्रभावी ढंग से लागू करने का निर्णय लिया है। यह कदम राज्य सरकार की सुराजी गांव योजना के तहत निर्मित किए जा रहे गोठानों को अधिक उत्पादक बनाने तथा खुले घूम रहे पशुओं की वजह से होने वाली फसल क्षति को रोकने के उद्देश्य से उठाया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ की कृषि परंपराओं में रोका-छेका की पद्धति पहले से प्रचलित है, अब राज्य सरकार ने इसे और अधिक व्यवस्थित तथा असरदार बनाने का निर्णय लिया है। मानसून के दौरान गांवों में खेतों की बुआई पूरी होने के बाद हांका के माध्यम से पशुओं की खुली चराई पर रोक लगा दी जाती है। ज्यादातर गांवों में गोठानों की व्यवस्था नहीं होने के कारण रोक की अवधि में पशु-मालिकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था, लेकिन अब इस समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकार की सुराजी गांव योजना के तहत प्रदेशभर में 5000 गोठानों का निर्माण किया जा रहा है। इनमें से 2200 गोठानों का निर्माण पूरा हो चुका है, तथा 2800 गोठानों का निर्माण तेजी से जारी है। शासन द्वारा सभी सरपंचों से अपील की गई है कि रोक की अवधि में पशुओं को गोठानों में रखा जाना सुनिश्चित करें, ताकि पशुधन की ठीक तरह से देखभाल हो सके और बोनी पूरी कर चुके किसानों को नुकसान से बचाया जा सके।

बीते दिनों इस संबंध में स्वयं मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने किसानों के लिए विशेष संदेश जारी करते हुए कहा कि बीजों के अंकुरण के साथ ही फसल की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो जानी चाहिए। इससे किसानों की उत्पादकता बढ़ेगी और आय भी। किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए शासन द्वारा किये जा रहे प्रयासों को मजबूती मिलेगी।

पिछले डेढ़ वर्षों के दौरान मुख्यमंत्री श्री बघेल गांवों को अर्थव्यवस्था के केंद्र में लाने की जरूरत पर लगातार जोर देते रहे हैं। इसी सोच के तहत ग्रामीण अर्थव्यवस्था के चार प्रमुख घटकों नरवा (नदी-नालों), गरवा (पशुधन), घुरवा (जैविक खाद) तथा बाड़ी (साग तथा फलोत्पदान) को पुनर्जीवित करने के लिए सुराजी गांव योजना शुरु की गई। गरवा कार्यक्रम के तहत निर्मित किए जा रहे गोठानों का एक उद्देश्य वृहद स्तर पर जैविक खाद का उत्पादन करना भी है, ताकि भूमि की उर्वरकता को बढ़ने के साथ-साथ कृषि लागत को भी कम किया जा सके। रोका-छेका की पुरानी पद्धति को नये गोठानों से जोड़ दिए जाने से अब जैविक खाद निर्माण के लिए भरपूर मात्रा में गोबर की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी। गोठानों के जरिये राज्य सरकार रोजगार के नये अवसरों का निर्माण भी कर रही है। इससे महिला स्व सहायता समूहों को भी जोड़ा गया है, जो गोबर से तरह-तरह की वस्तुओं और कलाकृतियों का निर्माण कर लाभ कमा रही हैं। उनके द्वारा निर्मित गोबर के दीयों, अगरबत्तियों ने पिछली दीपावली के दौरान दिल्ली तक अपनी पहचान बनाई। इसके अलावा वे खेतों की बाड़ के लिए कांक्रीट-पोल निर्माण, बांस के ट्री-गार्ड निर्माण, कृषि और वनोपजों के प्रसंस्करण आदि गतिविधियों से भी आमदनी प्राप्त कर रही हैं।

 कोरोना काल में लाकडाउन के दौरान राज्य शासन ने मनरेगा के जरिये हर रोज औसतन 25 लाख ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराकर अपने नरवा कार्यक्रम को आगे बढ़ाया है। इसके तहत बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत और सामुदायिक तालाबों, कुंओं, बंधानों आदि का निर्माण कर सिंचाई संबंधी अधोसंरचनाओं को मजबूत बनाया जा रहा है। व्यक्तिगत कुंओं के निर्माण से बाड़ियों के जरिये साग और फलोत्पादन में बढ़ोतरी भी सुनिश्चित की गई। कोरोना संकट के बावजूद इस खरीफ मौसम में खेती को लेकर किसानों में खासा उत्साह नजर आ रहा है। मनरेगा से मिलने वाले रोजगार के कारण गांवों में निरंतर आर्थिक गतिशीलता बनी रही, वहीं इसी दौरान राज्य शासन द्वारा शुरु की गई राजीव गांधी किसान न्याय योजना ने उत्साह दोगुना कर दिया। इस योजना के तहत धान, मक्का तथा गन्ना उत्पादक किसानों को 5750 करोड़ रुपए की आदान सहायता राशि सीधे उनके खातों में अंतरित की जा रही है। योजना के पहले ही दिन, यानी 21 मई को राजीव गांधी जी के शहादत दिवस पर 1500 करोड़ रुपए की पहली किस्त जारी भी कर दी गई। दूसरी किस्त 20 अगस्त को राजीव जयंती के अवसर पर जारी की जाएगी।

छत्तीसगढ़ में सरकार बनने के तुरत बाद मुख्यमंत्री श्री बघेल ने कर्जमाफी, सिंचाई कर माफी और धान की कीमत में बढ़ोतरी जैसे निर्णय लेकर अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट कर दी थी। इसी के तहत प्रदेश के 18 लाख किसानों का 8800 करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर दिया गया था। किसानों से 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदने का निर्णय लिया गया, जोकि देश में सर्वाधिक था।

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