मेहंदी व तिलक लगाकर बच्चे आ सकते है स्कूल, NCPCR ने दिया सभी स्कूल सचिवों को निर्देश…

मेहंदी व तिलक लगाकर बच्चे आ सकते है स्कूल, NCPCR ने दिया सभी स्कूल सचिवों को निर्देश…

दुर्ग। अब किसी भी सरकारी स्कूल निजी स्कूल मिशनरी स्कूल निजी स्कूल मिशनरी स्कूल केंद्रीय शिक्षण संस्था अथवा किसी भी क्षेत्र के स्कूल में कोई बालक या बालिका मेहंदी लगाकर, राखी बांधकर, तिलक लगाकर या कोई अन्य रक्षा सूत्र या धार्मिक प्रतीक लगाकर स्कूल आता है तो उसे स्कूल आने से नहीं रोका जा सकेगा। भारत सरकार के राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, दिल्ली की अध्यक्ष प्रियंका कानूनगो ने इस संबंध में सभी राज्यों के स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिवों को पत्र लिखकर निर्देश जारी किया है।
आयोग ने इसे बच्चों का मौलिक अधिकार माना है।

मालूम हो कि देशभर में कई मिशनरीज व इंग्लिश मीडियम स्कूल ऐसे हैं जहां बच्चे मेहंदी लगाकर, तिलक लगाकर या कोई अन्य धार्मिक आस्था से जुडे धागे बांधकर स्कूल आने पर मनाही थी ।  भिलाई के ही डीपीएस स्कूल में मेहंदी लगाकर आने वाले छात्रों के पालकों को सख्त हिदायत दी जाती थी कि बच्चों को मेहंदी लगाकर स्कूल ना भेजें। इसी तरह कई मिशनरीज स्कूल के बच्चे किसी भी तरह के धार्मिक प्रतीक लगाकर स्कूल नहीं जा सकते हैं ।अब इन स्कूलों के संचालक उन बच्चों को मना नहीं कर सकेंगे जो मेहंदी तिलक या कोई अन्य रक्षा सूत्र बांधकर स्कूल आते हैं । हालांकि एनसीपीआर की अध्यक्ष प्रियंका कानूनगो ने इस बारे में निर्देश नहीं दिया है कि हिंदू बच्चों को मिशनरी स्कूलों में अन्य धर्म के धार्मिक प्रार्थनाएं कराई जाती है, उस पर रोक नहीं लगाया गया है। किंतु यह भी है कि अब अपने धार्मिक प्रतीकों को इस्तेमाल करने वाले बच्चों को इस आधार पर स्कूल वाले एतराज नहीं जाता सकते कि स्कूल में उक्त चिन्ह प्रतिबंधित है । अब बच्चों को इस बात से मना नहीं किया जा सकता या उन्हें स्कूल आने से रोका नहीं जा सकता ।

बताया जा रहा है कि सरकार का यह कदम काफी सोच विचार के बाद उठाया गया कदम है । देश भर के स्कूलों में कई धार्मिक मान्यताएं प्रतिपादित हो रही हैं। इस कड़ी में हिंदू धर्म की मान्यताओं को स्कूल वाले लगातार खारिज करते आए हैं और उन बच्चों को ऐसा करने से मना करते भी रहे हैं। यहां तक देश के कई इंग्लिश मीडियम स्कूल ऐसे हैं जहां हिंदी में बात करने पर बच्चों से दंड राशि भी ली जाती है। यह भारत देश में हिंदी भाषा का अपमान नहीं तो और क्या है ? अपनी भाषा में बात करने वाले बच्चों को यदि इस देश में दंडित किया जाए, जहां की आधी आबादी हिंदी बोलती हो तो इससे बड़ी विडंबना कुछ और नहीं होगी। ऐसे में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने का मार्ग कठिन होता जाएगा। हालांकि अंग्रेजी आज की जरूरत है । अंग्रेजी लिखने पढ़ने बोलने से कोई मनाही नहीं। लेकिन सिर्फ इसी आधार पर बच्चों को हिंदी बोलने से रोका नहीं जा सकता । आने वाले समय में सरकार इस दिशा में भी कड़े कदम उठा सकती है।

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