छत्तीसगढ़ में आरक्षण मामले पर बवाल जारी है। मंगलवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, राज्यपाल अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही हैं। उन्होंने कहा, विधानसभा से पारित बिल पर सरकार से सवाल करने का राज्यपाल को अधिकार ही नहीं है। सरकार की याचिका पर एक दिन पहले उच्च न्यायालय ने राजभवन से जवाब मांगा है।
भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के लिए रवाना होने से पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रायपुर हेलीपैड पर पत्रकारों से बातचीत की। इस दौरान उन्होंने कहा, राज्यपाल खुद अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही हैं। जो बिल विधानसभा से पारित हुआ है उसके बारे में सरकार से पूछने का उन्हें कोई अधिकार ही नहीं है। उसी के आधार पर तो हम कोर्ट गए हैं। कोर्ट ने यदि उसको नोटिस दिया है तो उसका जवाब कोर्ट को देना चाहिए, बाहर नहीं। अगर उनको वकील भी लगाना है तो राज्य सरकार से पूछकर ही लगाएंगी ना। क्योंकि सरकार की सलाह से ही राज्यपाल काम करती हैं।
सोमवार को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की जस्टिस रजनी दुबे ने सरकार की एक याचिका पर राजभवन को नोटिस जारी किया। इस मामले में एक सामाजिक कार्यकर्ता, एक वकील और राज्य सरकार ने अलग-अलग याचिका दायर क है। राज्य सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने जिरह किया। उन्होंने कहा कि राज्यपाल को सीधे तौर पर विधेयक को रोकने का कोई अधिकार नहीं है। नोटिस के बाद जवाब देने के लिए राजभवन को एक सप्ताह का समय दिया गया है।
राजभवन में अटका है नया आरक्षण विधेयक
राज्य सरकार ने आरक्षण विवाद के विधायी समाधान के लिए छत्तीसगढ़ लोक सेवाओं में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गों के आरक्षण अधिनियम में संशोधन करने का फैसला किया। शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए भी आरक्षण अधिनियम को भी संशोधित किया गया। इसमें अनुसूचित जाति को 13%, अनुसूचित जनजाति को 32%, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% आरक्षण का प्रावधान किया गया।
तर्क था कि अनुसूचित जाति-जनजाति को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण दिया गया है। OBC का आरक्षण मंडल आयोग की सिफारिशों पर आधारित है और EWS का आरक्षण संसद के कानून के तहत है। इस व्यवस्था से आरक्षण की सीमा 76% तक पहुंच गई। विधेयक राज्यपाल अनुसूईया उइके तक पहुंचा तो उन्होंने सलाह लेने के नाम पर इसे रोक लिया। बाद में सरकार से सवाल किया। दो महीने बाद भी उन विधेयकों पर राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं हुए हैं।
आरक्षण मामले में अब तक क्या-क्या हुआ है
- 19 सितम्बर को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में उच्च न्यायालय का फैसला आया। इसमें छत्तीसगढ़ में आरक्षण पूरी तरह खत्म हो चुका है।
- शुरुआत में कहा गया कि इसका असर यह हुआ कि प्रदेश में 2012 से पहले का आरक्षण रोस्टर लागू हो गया है। यानी एससी को 16%, एसटी को 20% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण मिलेगा।
- सामान्य प्रशासन विभाग ने विधि विभाग और एडवोकेट जनरल के कार्यालय से इसपर राय मांगी। लेकिन दोनों कार्यालयों ने स्थिति स्पष्ट नहीं की।
- सामान्य प्रशासन विभाग ने सूचना के अधिकार के तहत बताया कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद 29 सितम्बर की स्थिति में प्रदेश में कोई आरक्षण रोस्टर क्रियाशील नहीं है।
- आदिवासी समाज ने प्रदेश भर में आंदोलन शुरू किए। राज्यपाल और मुख्यमंत्री को मांगपत्र सौंपा गया। सर्व आदिवासी समाज की बैठकों में सरकार के चार-चार मंत्री और आदिवासी विधायक शामिल हुए।
- लोक सेवा आयोग और व्यापमं ने आरक्षण नहीं होने की वजह से भर्ती परीक्षाएं टाल दीं। जिन पदों के लिए परीक्षा हो चुकी थीं, उनका परिणाम रोक दिया गया। बाद में नये विज्ञापन निकले तो उनमें आरक्षण रोस्टर नहीं दिया गया।
- सरकार ने 21 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय में रिट याचिका दायर कर उच्च न्यायालय का फैसला लागू होने से रोकने की मांग की। शपथपत्र पर लिखकर दिया गया है कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद प्रदेश में भर्तियां रुक गई हैं।
- राज्यपाल अनुसूईया उइके ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हालात पर चिंता जताई। सुझाव दिया कि सरकार आरक्षण बढ़ाने के लिए अध्यादेश लाए अथवा विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए।
- सरकार ने विधेयक लाने का फैसला किया। एक-दो दिसम्बर को विधानसभा सत्र बुलाने का प्रस्ताव राजभवन भेजा गया, उसी दिन राज्यपाल ने उसकी अनुमति दे दी और अगले दिन अधिसूचना जारी हो गई।
- 24 नवम्बर को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में आरक्षण संशोधन विधेयकों के प्रस्ताव के हरी झंडी मिल गई।
- 2 दिसम्बर को तीखी बहस के बाद विधानसभा ने सर्वसम्मति से आरक्षण संशोधन विधेयकों को पारित कर दिया। इसमें एससी को 13%, एसटी को 32%, ओबीसी को 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% का आरक्षण दिया गया। जिला कॉडर की भर्तियों में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण तय हुआ। ओबीसी के लिए 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% की अधिकतम सीमा तय हुई।
- 2 दिसम्बर की रात को ही पांच मंत्री विधेयकों को लेकर राज्यपाल से मिलने पहुंचे। यहां राज्यपाल ने जल्दी ही विधेयकों पर हस्ताक्षर का आश्वासन दिया। अगले दिन उन्होंने सोमवार तक हस्ताक्षर कर देने की बात कही। उसके बाद से विधेयकों पर हस्ताक्षर की बात टलती रही।
- 14 दिसम्बर को राज्यपाल ने सरकार से 10 सवाल पूछे। कहा, इसका जवाब आए बिना विधेयकों पर निर्णय लेना संभव नहीं।
- 10 दिन बाद सरकार ने राजभवन को जवाब भेज दिया।
- राजभवन ने उस जवाब को नाकाफी बताया, कहा – उनके सवालों का स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया। क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रपट नहीं दी गई।
- 3 जनवरी को कांग्रेस ने राज्यपाल के हठ के विरोध में रायपुर में बड़ी रैली कर चुनौती दी।
- 6 फरवरी को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राजभवन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। इसके लिए राज्य सरकार और दो निजी लोगों ने याचिका दायर कर राज्यपाल के अधिकारों को चुनौती दी थी।